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भगवती
सूत्र - शं. ८ उ ९ प्रयोग और विस्रसा बंध
भाजन यानी आधार के निमित्त से जो बन्ध होता है, उसे 'भाजन प्रत्ययिक बन्ध कहते हैं । जैसे-घड़े में रखी हुई पुरानी मदिरा गाढ़ी हो जाती है, पुराना गुड़ और पुराने चावलों का पिण्ड बन्ध जाता है, यह - 'भाजन - प्रत्ययिक बन्ध' कहलाता है ।
परिणाम अर्थात् रूपान्तर के निमित्त से जो बन्ध होता है । उसे 'परिणाम प्रत्ययिक बन्ध' कहते हैं ।
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स्निग्धता और रूक्षता इन गुणों से परमाणुओं का बन्ध होता है । यह बन्ध किस प्रकार होता है, इस विषय में नियम बतलाते हुए कहा है कि
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समद्धियाए बंधो ण होइ, समलुक्खयाए वि ण होइ । मायनिद्धलक्खत्तणेण, बंधो उ खंधाणं ।। १ ।।
निद्धस्स निद्वेण दुयाहियेणं लुक्खस्स लुक्खेण व्याहियेणं । निद्धस्स लुकवेण उवेइ बंधो, जहण्ण वज्जो विसमो समो वा ।। २ ।।
अर्थ - समान स्निग्धता में या समान रूक्षता में स्कन्धों का परस्पर बन्ध नहीं होता विषम स्निग्धता और विषम रूक्षता में बंध होता है। स्निग्ध का द्विगुणादि अधिक स्निग्ध के माथ और रूक्ष का द्विगुणादि अधिक रूक्ष के साथ बन्ध होना है । जघन्य गुण को
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छोड़कर स्निग्ध का रूक्ष के साथ सम या विषम बन्ध होता है अर्थात् एक गुण स्निग्ध या एक गुण रूक्ष रूप जघन्य गुण को छोड़कर शेष सम या विषम गुण वाले स्निग्ध अथवा रूक्ष का परस्पर बन्ध होता है । समान स्निग्ध का समान स्मिग्ध के साथ तथा समान रूक्ष का समान रूक्ष के साथ बन्ध नहीं होता । जैसे- एक गुण स्निग्ध का एक गुण स्निग्ध के साथ बन्ध नहीं होता, एक गुण स्निग्ध का दो गुण स्निग्ध के साथ बन्ध नहीं होता, किन्तु तीन गुण स्निग्ध के साथ बन्ध होता है । दो गुण स्निग्ध का दो गुण स्निग्ध के साथ बन्ध नहीं होता, दो गुण स्निग्ध का तीन गुण स्निग्ध के साथ भी बन्ध नहीं होता, किन्तु चार गुण स्निग्ध के साथ बन्ध होता है। जिस प्रकार स्निग्ध के विषय में कहा, उसी प्रकार के विषय में भी जान लेना चाहिये। एक गुण को छोड़कर पर स्थान में स्निग्ध और रूक्ष का परस्पर सम या विषम दोनों प्रकार के बन्ध होते हैं। जैसे कि एक गुण स्निग्ध का एक गुण रूक्ष के साथ बन्ध नहीं होता, किन्तु द्वयादि गुण रूक्ष के साथ बन्ध होता है । दो गुण स्निग्ध का दो गुण रूक्ष के साथ बन्ध होता है । दो गुण स्निग्ध का तीन गुण रूक्ष के साथ भी बन्ध होता है। इस प्रकार सम और विषम दोनों प्रकार के बन्ध होते हैं ।
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