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________________ भगवता सूत्र- श द उ ९ प्रयाग और विस्रसा बंध ७ उत्तर - हे गौतम! परमाणु, द्विप्रदेशिक, त्रिप्रदेशिक यावत् दस प्रदे शिक, संख्यात प्रदेशिक, असंख्यात प्रदेशिक और अनन्त प्रदेशिक पुद्गल स्कन्धों का विषम स्निग्धता द्वारा, विषम रूक्षता द्वारा और विषम स्निग्धरूक्षता द्वारा बंधनप्रत्ययिक बंध होता है, वह जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्य काल तक रहता है। इस प्रकार बंधनप्रत्ययिक बंध कहा गया है । ८ प्रश्न - हे भगवन् ! भाजनप्रत्ययिक सादि विस्त्रसा बंध किसे कहते हैं ? ८ उत्तर - हे गौतम! पुरानी मदिरा, पुराना गुड़ और पुराने चावलों का भाजन- प्रत्ययिक सादि-वित्रता बंध होता है । वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यात काल तक रहता है। यह भाजन- प्रत्ययिक बंध कहा गया है । १४७३ ९ प्रश्न - हे भगवन् ! परिणाम प्रत्ययिक सादि विस्रसा बंध किसे कहते हैं? ९ उत्तर - हे गौतम ! बादलों का अभ्रवृक्षों का यावत् अमोघों ( सूर्य के उदय और अस्त के समय सूर्य की किरणों का एक प्रकार का आकार 'अमोघ' कहलाता है) आदि के नाम तीसरे शतक के सातवें उद्देशक X में कहे गये हैं, - उन सब का परिणाम प्रत्ययिक बंध होता है । वह बंध जघन्य एक समय और उत्कृष्ट छह मास तक रहता है। इस प्रकार परिणाम प्रत्ययिक बंध कहा गया है । यह सादि-विसा बंध एवं विस्त्रसा बंध का कथन हुआ । विवेचन - जो मन, वचन और कायारूप योगों की प्रवृत्ति से बंधता है, उसे 'प्रयोग बन्ध' कहते हैं। जो स्वाभाविक रूप से बंधता है उसे 'विस्रसा बन्ध' कहते हैं । धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय की अपेक्षा विस्रसा बन्ध के तीन भेद कहे गये हैं। धर्मास्तिकाय के प्रदेशों का दूसरे प्रदेशों के साथ जो सम्बन्ध होता है, वह 'देश बन्ध' होता है, किन्तु सर्व-बन्ध नहीं होता । यदि सर्व-बन्ध माना जाय तो एक प्रदेश में दूसरे सभी प्रदेशों का समावेश हो जाने से धर्नास्तिकाय एक प्रदेश रूप ही रह जायगा, किन्तु यह असंगत है । अतः इनका देश-बन्ध ही होता हैं, सर्व-बन्ध नहीं । इसी तरह अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय के विषय में भी समझना चाहिये । स्निग्धता आदि गुणों से परमाणुओं का जो बन्ध होता है, उसे 'बन्धनप्रत्ययिक बन्ध' कहते हैं । X देखो भाग २ ० ७१३ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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