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भगवती सूत्र-श. ८ उ. ९ प्रयोग और विनमा बन्ध
क्षेत्र में गमन नहीं करता क्योंकि वह तो अतिक्रान्त हो चुका है। इसी प्रकार अनागत क्षेत्र में भी गति नहीं करता । किन्तु वर्तमान क्षेत्र में गति करता है । इसी प्रकार अतीत और अनागत तया अस्पष्ट और अनवगाह क्षेत्र को प्रकाशिन, उद्योतित और तप्त नहीं करता, किन्तु वर्तमान, स्पृष्ट और अवगाढ़ क्षेत्र को प्रकाशित, उद्यानित और तप्त करता है अर्थात् इसी क्षेत्र में क्रिया करता है, अतीत, अनागत में नहीं।
सूर्य, अपने विमान से मो योजन ऊपर क्षेत्र को प्रकाशित, उद्योनिन और तप्त करते हैं । सूर्य से आठ सौ योजन नीचे समतल भूमि भाग है और वहाँ से हजार योजन नीचे अधोलोक ग्राम है। वहां तक सूर्य प्रकाशित. उद्योतित और तप्त करते हैं । सर्वोत्कृष्ट अर्थात् सबमे बड़ दिन में चक्षु-स्पर्श की अपेक्षा सूर्य ४७२६३१ योजन तक तिरछे क्षेत्र को उद्योतित. प्रकाशित और तप्त करते हैं। इसके पश्चात चन्द्र, मर्य, ग्रह, नक्षत्र, तारा आदि के विषय में प्रश्न किये गये हैं, उनके उत्तर के लिए जीवाभिगम मूत्र की तीसरी प्रतिपत्ति की भलामण दी गई है । वहाँ ज्योतिषी देवताओं का विस्तृत वर्णन है ।
॥ इति आठवें शतक का आठवां उद्देशक सम्पूर्ण ॥
शतक ८ उद्देशक प्रयोग और विससा बन्ध
१ प्रश्न-कइविहे णं भंते ! बंधे पण्णत्ते ? . १ उत्तर-गोयमा ! दुविहे बंधे पण्णत्ते, तं जहा-पओगबंधे य वीससाबंधे य।
२ प्रश्न-वीससाबंधे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? २ उत्तर-गोयमा ! दुविहे पण्णते, तं जहा-साईयवीससाबंधे
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