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________________ १४६८ भगवती सूत्र - श. ८ उ ८ सूर्य और उसकी प्रकाश गण, नक्षत्र और तारा रूप देव हैं, क्या वे उर्ध्वलोक में उत्पन्न हुए हैं ? ४६ उत्तर - हे गौतम! जिस प्रकार जीवाभिगम सूत्र की तीसरी प्रतिपत्ति में कहा गया है, उसी प्रकार यहां भी कहना चाहिये । यावत् उनका 'उपपात विरह काल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट छह मास है,' यहां तक कहना चाहिये । ४७ प्रश्न - हे भगवन् ! मनुष्योत्तर पर्वत के बाहर जो चन्द्रादि देव हैं, वे ऊर्ध्वलोक में उत्पन्न हुए हैं ? ४७ उत्तर - हे गौतम! जिस प्रकार जीवाभिगम सूत्र की तीसरी प्रतिपत्ति में कहा गया है, उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिये । यावत् ' ( प्रश्न ) हे भगवन् ! इन्द्रस्थान कितने काल तक उपपात विरहित कहा गया हैं ? (उत्तर) हे गौतम! जघन्य एक समय, उत्कृष्ट छह मास का विरह कहा गया है । अर्थात् एक इन्द्र के मरण ( च्यवन) के पश्चात् जघन्य एक समय बाद और उत्कृष्ट छह महीने बाद दूसरा इन्द्र उस स्थान पर उत्पन्न होता है। इतने काल तक इन्द्रस्थान उपपात विरहित होता है'- यहाँ तक कहना चाहिये । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । ऐसा कहकर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं । विवेचन - सूर्य समतल भूमि से आठ सौ योजन ऊँचा है, किन्तु उदय और अस्त के समय देखने वालों को अपने स्थान की अपेक्षा निकट दिखाई देता है । इसका कारण यह है कि उस समय उसका तेज मन्द होता है । मध्यान्ह के समय देखने वालों को अपने स्थान की अपेक्षा दूर मालूम होता है। इसका कारण यह हैं कि उस समय उसका तेज तीव्र होता है । इन्हीं कारणों से सूर्य निकट और दूर दिखाई देता है। अन्यथा उदय, अस्त और मध्यान्ह के समय सूर्य तो समतल भूमि से आठ सौ योजन ही दूर रहता है। यहां पर क्षेत्र के साथ अतीत, वर्तमान और अनागत विशेषण लगाये गये हैं । जो क्षेत्र अतिक्रान्त हो गया है अर्थात् जिस क्षेत्र को सूर्य पार कर गया है, उस क्षेत्र को 'अतिकान्त क्षेत्र' कहते हैं, जिस क्षेत्र में अभी सूर्य गति कर रहा है, उसे 'वर्तमान क्षेत्र' कहते हैं। और जिस क्षेत्र में सूर्य अब गमन करेगा, उस क्षेत्र को 'अनागत क्षेत्र' कहते है। सूर्य अतीत Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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