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भगवती सूत्रन्य. ८ उ. ८ सूर्य और उसका प्रकाश
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जोयणसए एक्कवीसं च सहिभाए जोयणस्स तिरियं तवंति ।
४६ प्रश्न-अंतो णं भंते ! माणुसुत्तरपव्ययस्स जे चंदिम-सूरियगहगण-णक्खत्त-तारारूवा ते णं भंते ! देवा किं उड्ढोववष्णगा ?
४६ उत्तर-जहा जोवाभिगमे तहेव गिरवसेसं जाव उक्कोसेणं छम्मासा। ...
४७ प्रश्न-बाहिया णं भंते ! माणुसुत्तररस ?
४७ उत्तर-जहा जीवाभिगमे, जाव इंदट्ठाणे णं भंते ! केवयं कालं उववाएणं विरहिए पण्णत्ते ? गोयमा ! जहण्णेणं एचकं समयं उक्कोमेणं छरमासा ।
* सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति.*
॥ अट्ठमसए अट्ठमो उद्देसो समत्तो ॥ ' कठिन शब्दार्थ-सीयालसं-सैतालीस, तेवढे-तिरसठ ।
भावार्थ-४५ प्रश्न-हे भगवन् ! जम्बूद्वीप में सूर्य कितने ऊँचे क्षेत्र को तप्त करते हैं, कितने नीचे क्षेत्र को तप्त करते हैं और कितने तिर्छ क्षेत्र को तप्त करते है ?
. ४५ उत्तर-हे गौतम ! सौ योजन ऊंचे क्षेत्र को तप्त करते हैं, अठारह सौ (१८००) योजन नीचे क्षेत्र को तप्त करते हैं और सैंतालीस हजार दो सौ त्रेसठ योजन तथा एक योजन के साठिया इक्कीस भाग (४७२६३१) तिर्छ क्षेत्र को तप्त करते हैं। . .४६ प्रश्न-हे भगवन् ! मनुष्योत्तर पर्वत के भीतर जो चन्द्र, सूर्य, ग्रह
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