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भगवनी भूत्र - श. ७ उ. १ शस्त्रातीन आदि दाष
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भावार्थ-२२ प्रश्न-हे भगवन् ! शस्त्रातीत, शस्त्रपरिणामित, एषित, व्येषित, सामुदायिक, भिक्षारूप पान-भोजन का क्या अर्थ है ?
२२ उत्तर-हे गौतम ! कोई निग्रंथ साधु या साध्वी जो शस्त्र और मूसलादि से रहित है, पुष्पमाला और चन्दन के विलेपन से रहित है, वे कृम्यादि जन्तुरहित, निर्जीव, साधु के लिये स्वयं नहीं बनाया हुआ एवं दूसरों से नहीं बनवाया हुआ, असंकल्पित, अनाहूत (आमन्त्रण रहित) अक्रोतकृत (नहीं खरीदा हुआ.) अनुद्दिष्ट (औद्देशिक आदि. दोष रहित) नव-कोटि विशुद्ध, शंकित आदि दस दोष रहित, उद्गम और उत्पादना सम्बन्धी एषणा के दोषों से रहित अंगार दोष रहित, धूम दोष रहित, संयोजना दोष रहित, सुरसुर और चपचप शन्द रहित, बहुत शीघ्रता और बहुत मन्दता से रहित, आहार के किसी अंश को छोडे बिना, नीचे न गिराते हुए, गाडी को धूरी के अंजन अथवा घाव पर लगाये जाने वाले लेप की तरह केवल संयम के निर्वाह के लिये और संयम का भार वहन करने के लिये, जिस प्रकार सर्प बिल में प्रवेश करता है, उसी प्रकार मो आहार करते हैं, तो हे गौतम ! वह शस्त्रातीत, शस्त्रपरिणामित यावत् पान-भोजन का अर्थ है।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। .. विवेचन-कैसा आहार शस्त्रातीत अर्थात् अग्नि आदि शस्त्र से उतरा हुआ तथा शस्त्रपरिणामितं अर्थात् अग्न्यादि शस्त्र लगने से अचित्त बना हुआ होता है, उस आहार पानी का अर्थ यहाँ बतलाया गया है।
नवकोटि विशुद्ध का अर्थ इस प्रकार है-(१)किसी जीव की हिंसा नहीं करना। (२) किसी जीव की हिंसा नहीं कराना । (३) हिंसा करने वाले का अनुमोदन भी नहीं करना । (४) स्वयं न पकाना । (५) दूसरों से न पकवाना । (६) पकाने वालों का अनुमोदन भी नहीं करना । (७) स्वयं न खरीदना । (८) दूसरों से नहीं खरीदवाना। (९) खरीदने वाले का अनुमोदन भी नहीं करना । इन नौ दोषों से रहित आहार, वस्त्र, पात्र, मकानादि नव कोटि विशुद्ध कहलाते हैं । ये ही मुनि के लिये कल्पनीय हैं।
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