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भगवती सूत्र - श ७ उ. १ गरत्रातीत आदि दोष
२२ उत्तर - गोयमा ! जेणं णिग्गंथे वा णिग्गंथी वा णिविखत्तसत्थमुसले ववगयमाला वण्णगविलेवणे ववगयचुयचइ यचत्तदेहं, जीवविप्पजढं, अकयं, अकारियं, असंकप्पियं, अणाहूयं, अकीयकडं अणुद्दिट्टं, णवकोडीपरिसुद्धं, दसदोस विप्पमुक्कं, उग्ग-मुप्पायणेसणासुपरिसुद्धं वीतिंगालं, वीतधूमं संजोयणादोस विप्पमुनकं, असुरसुरं अचवचनं अदुयं, अविलंबियं अपरिसाडिं, अक्खोवंजण-वणाणुलेवणभूयं, संजमजायामायावत्तियं, संजमभारवहणट्टयाए विलमिव पणगभूपणं अप्पाणेणं आहारमाहारेइ एस णं गोयमा ! सत्थातीयरस, सत्यपरिणामियरस जाव पाण- भोयणरस अयमट्टे पणत्ते ।
* सेवं भंते! मेवं भंते ! त्ति
॥सत्तमसए पढमो उद्देसो समत्तो ॥
'कठिन शब्दार्थ — सत्यातीयस्स - शस्त्रातीत, सत्यपरिणामियस्स— शस्त्र परिणामित, एसिस्स - एषणीय, वेसियस्स- व्येषित - विविध, सामुदाणियस्स — सामुदायिक, वित्त सत्यमूसले - शस्त्र मूसलादि रहित, ववगयमालाबण्णगविलेवणे -- पुष्पमाला और चन्दनादि विलेप रहित, चुयचयचत्तवेह - देह शोभा रहित, जीवविप्पजढं-जीव रहित - प्रासुक, अणाहूयं -- अनाहूत - आमन्त्रण रहित, अकीयकडं खरीदा हुआ नहीं, अनुद्दिट्ठऔद्देशिक नहीं, उग्गमुप्पायणे सणापरसुद्धं- - उद्गम उत्पादन रूप एषणादि दोष रहित शुद्ध, असुरसुरं - - सुसुशब्द रहित, अचबचवं - चपचप शब्द रहित, अदुयं-- शीघ्रता रहित, उतावल रहित, अपरिसाडि -- नहीं छोड़ते हुए, अक्खोवंजणवणाणुलेवणभूनं गाड़ी की धूरी के लेप और व्रण पर लेप की तरह, संजमजायामायावत्तियं - संयम यात्रा मात्रा का निर्वाह करने, बिलमिखपण्णगभूएन- बिल में सर्प सीधा होकर जाता है, उस तरह सीधा गले उतारना ।
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