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________________ भगवती सूत्र - श. ७ उ १ शस्त्रातीत आदि दोप . या साध्वी यावत् आहार को ग्रहण करके आधे योजन की मर्यादा का उल्लंघन करके खाता है, तो हे गौतम ! यह मार्गातिक्रान्त पान-भोजन कहलाता है । जो कोई निर्ग्रन्थ साधु या साध्वी यावत् आहार को ग्रहण करके कुक्कुटी अण्डक प्रमाण बत्तीस कवल ( ग्रास) से अधिक खाता है, तो हे गौतम ! यह प्रमाणाति. कान्त पान- भोजन कहलाता है । कुक्कुटीअण्डक प्रमाण आठ कवल का आहार करने वाला साधु 'अल्पाहारी' कहलाता है। कुवकुटी अण्डक प्रमाण बारह कवल का आहार करने वाले साधु के 'किञ्चिन्न्यून अर्ध ऊनोदरिका' होती है। कुक्कुटी अण्डकप्रमाण सोलह कवल का आहार करने वाले साधु के 'अर्ध ऊनोदरिका' होती है । अर्थात् वह साधु द्विभाग प्राप्त (अर्धाहारी) कहलाता है। कुक्कुटी rush प्रमाण चौवीस कवल का आहार करने वाले साधु के 'ऊनोदरिका' होती - है कुक्कुटी अण्डक प्रमाण बत्तीस कवल का आहार करने वाला साधु 'प्रमाण प्राप्त' (प्रमाणयुक्त) आहार करने वाला कहलाता है । बत्तीस कवल से एक. भी कवल कम आहार करने वाला साधु 'प्रकाम-रस- भोजी ' ( अत्यन्त मधुरादि रस का भोक्ता ) नहीं कहलाता। इस प्रकार क्षेत्रातिक्रान्त, कालातिक्रान्त, मार्गातिक्रान्त और प्रमाणातिक्रान्त पान- भोजन का अर्थ कहा गया है । विवेचन - क्षेत्रातिक्रान्त-यहां क्षेत्र शब्द का अर्थ है-सूर्य सम्बन्धी ताप-क्षेत्र, अर्थात् दिन, इसका अतिक्रमण करना 'क्षेत्रातिक्रान्त' कहलाता है। दिन के पहले प्रहर में लाये हुए आहार को चौथे प्रहर में करना 'कालातिक्रान्त' है। आधे योजन से आगे ले जाकर आहारोदि करना : 'मार्गातिक्रान्त' है । बत्तीस कवलप्रमाण से अधिक आहार करना ' प्रमाणातिक्रान्त' है । इसका विवेचन पहले किया जा चुका है । शस्त्रातीत आदि दोष २२ प्रश्न - अह भंते ! सत्यातीयस्स, सत्यपरिणामियस्स, एसियस्स, वेसियस्स, सामुदाणियस्स पाण-भोयणरस के अट्टे पण्णत्ते ? Jain Education International ११०१ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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