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________________ ११०० भगवती सूत्र-श. ७ उ. १ क्षेत्रातिक्रान्तादि दोष कुक्कुडिअंडगपमाणमेत्ते कवले आहारं आहारेमाणे अप्पाहारे, दुवालस कुक्कुडिअंडगपमाणमेत्ते कवले आहारं आहारेमाणे अवड्ढोमोयरिए, सोलस कुक्कुडिअंडगपमाणमेत्ते कवले आहारं आहारेमाणे दुभागप्पत्ते, चउव्वीसं कुक्कुडिअंडगपमाणे जाव आहारं आहारेमाणे ओमोयरिए, बत्तीसं कुक्कुडिअंडगमेत्ते कवले आहारं आहारेमाणे पमाणपत्ते, एत्तो एक्केण वि घासेणं ऊणगं आहारं आहारेमाणे समणे णिग्गंथे णो पकामरसभोईत्ति वत्तव्वं सिया। एस गं गोयमा ! खेत्ताइक्कंतस्स, कालाइक्कंतस्स, मग्गाइक्कंतस्स पमाणाइक्कंतस्स पाण-भोयणस्स अट्टे पण्णत्ते । कठिन शब्दार्थ-खेताइक्कंतस्स-क्षेत्रातिक्रान्त, अणुग्गए सूरिए-सूर्य के बिना उदित हुए, उवायणावेता-रखकर, परं अजोयणमेराए बोइक्कमावइत्ता-आधयोजन (दो कोस) की मर्यादा का उल्लंघन करके, कुक्कुडिअंडगपमाणे-कुक्कुटी (मुर्गी) के अंडे के नराबर, अवड्डोमोपरिए-अपार्च ऊनोदरिका, दुभागप्पत्ते-द्विभाग प्राप्त, ओमोयरिए-ऊनोदरिका, पमाणपत्ते-प्रमाणप्राप्त (प्रमाण के अनुसार) घासेणं-ग्रास, ऊणगं-कम, पकामरसमोईप्रकामरस भोजी (अत्यंत मधुरादि रस का खाने वाला)। भावार्थ-२१ प्रश्न-हे भगवन् ! क्षेत्रातिक्रान्त, कालातिक्रान्त, मार्गातिक्रान्त और प्रमाणातिकान्त पान-भोजन का क्या अर्थ है ? २१ उत्तर-हे गौतम ! जो कोई निग्रंथ साधु या साध्वी, प्रासुक और एषणीय अशन-पान-खादिम और स्वादिम, इन चार प्रकार के आहार को सूर्योदय से पूर्व ग्रहण करके सूर्योदय के पीछे खाता है, तो हे गौतम ! यह'क्षेत्रातिक्रान्त पान-भोजन' कहलाता है। जो कोई निर्ग्रन्थ साधु या साध्वी यावत् आहार को प्रथम पहर में ग्रहण करके अन्तिम पहर तक रखकर खाता है, तो हे गौतम ! यह 'कालातिकान्त पानभोजन' कहलाता है । जो कोई निर्ग्रन्थ साधु Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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