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भगवती सूत्र श. ७ उ. १ क्षेत्रातिक्रान्तादि दोष
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ऊनीदरो है । बारह कवलप्रमाण आहार करना ढाई-भाग ऊनोदरी है । उस आहार का अर्धांश (आधा भाग) खाना 'द्विभाग प्राप्त' ऊनोदरी है। उस आहार का तीन चौथाई भाग खाना 'अवमोदरिका' है अर्थात् चतुर्थांश ऊनोदरी है और अपनी जितनी खुराक है उतना आहार करना 'प्रमाण प्राप्त' आहार कहलाता है । इससे एक कवल भी कम आहार करने वाला मुनि 'प्रकाम-रस-भोजी' नहीं कहलाता।
क्षेत्रातिक्रान्तादि दोष
२१ प्रश्न-अह भंते ! खेत्ताइक्कंतस्स, कालाइक्कंतस्स, मग्गाइ. किंतस्स पमाणाइकंतस्स पाण-भोयणस्स के अटे पण्णत्ते ? . २१ उत्तर-गोयमा ! जे णं णिग्गंथे वा णिग्गंथी वा फासुएसणिजं असण-पाण-खाइम-साइमं अणुग्गए सूरिए पडिग्गाहेत्ता उग्गए सूरिए आहारं आहारेइ, एस णं गोयमा ! खेत्ताइक्कते पाण-भोयणे । जे णं णिग्गंथे वा जाव साइमं पढमाए पोरिसीए पडिग्गाहेत्ता पच्छिमं पोरिसिं उवायणावेत्ता आहारं आहारेइ, एस णं गोयमा ! कालाइक्कते पाण-भोयणे । जे णं णिग्गंथे वा जाव साइमं पडिग्गाहित्ता परं अद्धजोयणमेराए वीइक्कमावइत्ता आहारमाहारेइ, एस णं गोयमा ! मग्गाइक्कंते पाण-भोयणे । जे णं णिग्गंथे वा णिग्गंथी वा फासु-एसणिजं जाव साइमं पडिग्गाहित्ता परं बत्तीसाए कुक्कुडिअंडगपमाणमेत्ताणं कवलाणं आहारं आहारेइ, एस णं गोयमा ! पमाणाइक्कते पाण-भोयणे । अट्ठ
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