SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 395
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४५८ भगवती सूत्र-श. ८ उ. ८ कर्म-प्रकृति और परीषह । • शीत परीषह-ठण्ड का परीषह । ४ उष्ण परीषह-गर्मी का परीषह । ५ दंशमशक परीषह-डांस, मच्छर, खटमल, जू , चिटी आदि का परीषह। .. ६ अचेल परीषह-नग्नता का परीषह । जीर्ण, अपूर्ण और मलीन आदि वस्त्रों के सद्भाव में भी यह परीषह होता है। ___७ अरति परीषह-मन में अरति अर्थात् उदासी से होने वाला कष्ट । संयम मार्ग में कठिनाइयों के आने पर, उसमें मन न लगे और उसके प्रति अरति (अरुचि) उत्पन्न हो, तो धैर्यपूर्वक उसमें मन लगाते हए अरति को दूर करना चाहिये। ८ स्त्री परीषह-स्त्रियों से होने वाला कष्ट तथा पुरुषों की तरफ से साध्वियों को होने वाला कप्ट । (यह अनुकूल परीषह है) ९ चर्या परीषद-ग्राम, नगर आदि के विहार में एवं चलने-फिरने से होने वाला कष्ट । १. निसीहिया परीषह-(निषद्या परीषह = नषेधिकी परीषह) स्वाध्याय आदि करने की भूमि में तथा सूने घर आदि में किसी प्रकार का उपद्रव होने से होने वाला कष्ट । ११ शय्या परीषह-रहने के स्थान की प्रतिकूलता से होने वाला कष्ट । १२ आक्रोश परीषह-कठोर वचन सुनने से होने वाला कष्ट । अर्थात् किसी के द्वारा धमकाया या फटकारा जाने पर होने वाला कष्ट । १३ वध परीषह-लकड़ी आदि से पीटा जाने पर होने वाला कष्ट । १४ याचना परीषह-भिक्षा मांगने में होने वाला कष्ट । १५ अलाभ परीषह-भिक्षा आदि के न मिलने पर होने वाला कष्ट । १६ रोग परीषह-रोग के कारण होने वाला कष्ट । १७ तॄणस्पर्श परीषह-घास के विछौने पर सोते समय शरीर में चुभने से या मार्ग में चलते समय तृणादि पैर में चुभने से होने वाला कष्ट । १८ जल्ल परीपह-शरीर और वस्त्र आदि में चाहे जितना मैल लगे, किन्तु उद्वेग को प्राप्त नहीं होना तथा स्नान की इच्छा नहीं करना। - १५ सत्कार-पुरस्कार परीषह-जनता द्वारा मान-पूजा होने पर हर्षित नहीं होना, और मान-पूजा न होने पर ग्वेदित न होना (यह अनुकूल परीषह है)। २० प्रज्ञा परीषह-प्रज्ञा अर्थात् बुद्धि की मंदता से होने वाला कष्ट । २१ अज्ञान परीषह-तप संयम की आराधना करते हुए भी अवधि आदि प्रत्यक्ष Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy