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भगवती सूत्र-श. ८ उ. ८ कर्म-प्रकृति और परीषह ।
• शीत परीषह-ठण्ड का परीषह । ४ उष्ण परीषह-गर्मी का परीषह । ५ दंशमशक परीषह-डांस, मच्छर, खटमल, जू , चिटी आदि का परीषह। ..
६ अचेल परीषह-नग्नता का परीषह । जीर्ण, अपूर्ण और मलीन आदि वस्त्रों के सद्भाव में भी यह परीषह होता है।
___७ अरति परीषह-मन में अरति अर्थात् उदासी से होने वाला कष्ट । संयम मार्ग में कठिनाइयों के आने पर, उसमें मन न लगे और उसके प्रति अरति (अरुचि) उत्पन्न हो, तो धैर्यपूर्वक उसमें मन लगाते हए अरति को दूर करना चाहिये।
८ स्त्री परीषह-स्त्रियों से होने वाला कष्ट तथा पुरुषों की तरफ से साध्वियों को होने वाला कप्ट । (यह अनुकूल परीषह है)
९ चर्या परीषद-ग्राम, नगर आदि के विहार में एवं चलने-फिरने से होने वाला कष्ट ।
१. निसीहिया परीषह-(निषद्या परीषह = नषेधिकी परीषह) स्वाध्याय आदि करने की भूमि में तथा सूने घर आदि में किसी प्रकार का उपद्रव होने से होने वाला कष्ट ।
११ शय्या परीषह-रहने के स्थान की प्रतिकूलता से होने वाला कष्ट ।
१२ आक्रोश परीषह-कठोर वचन सुनने से होने वाला कष्ट । अर्थात् किसी के द्वारा धमकाया या फटकारा जाने पर होने वाला कष्ट ।
१३ वध परीषह-लकड़ी आदि से पीटा जाने पर होने वाला कष्ट । १४ याचना परीषह-भिक्षा मांगने में होने वाला कष्ट । १५ अलाभ परीषह-भिक्षा आदि के न मिलने पर होने वाला कष्ट । १६ रोग परीषह-रोग के कारण होने वाला कष्ट ।
१७ तॄणस्पर्श परीषह-घास के विछौने पर सोते समय शरीर में चुभने से या मार्ग में चलते समय तृणादि पैर में चुभने से होने वाला कष्ट ।
१८ जल्ल परीपह-शरीर और वस्त्र आदि में चाहे जितना मैल लगे, किन्तु उद्वेग को प्राप्त नहीं होना तथा स्नान की इच्छा नहीं करना।
- १५ सत्कार-पुरस्कार परीषह-जनता द्वारा मान-पूजा होने पर हर्षित नहीं होना, और मान-पूजा न होने पर ग्वेदित न होना (यह अनुकूल परीषह है)।
२० प्रज्ञा परीषह-प्रज्ञा अर्थात् बुद्धि की मंदता से होने वाला कष्ट । २१ अज्ञान परीषह-तप संयम की आराधना करते हुए भी अवधि आदि प्रत्यक्ष
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