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भगवती सूत्र-श. ८ उ. ८ कर्म प्रकृति और परीषह
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कितने परीषह कहे गये हैं ?
३३ उत्तर-हे गौतम ! षड्-विध बन्धक के समान चौदह परीषह कहे गये हैं, किन्तु वह एक साथ बारह परोषह वेदता है। जिस प्रकार षड् विध बन्धक के विषय में कहा है, उसी प्रकार एक-विध बन्धक वीतराग छद्मस्थ के विषय में भी कहना चाहिये।
- ३४ प्रश्न-हे भगवन् ! एक-विध बंधक सयोगी भवस्थ केवली के कितने परीषह कहे गये है ? ..
३४ उत्तर-हे गौतम ! ग्यारह परीषह कहे गये हैं, किंतु एक साथ नौ परीषह वेदता है । शेष सारा कथन षड् विध बंधक के समान जानना चाहिये।
__३५ प्रश्न-हे भगवन् ! अबन्धक अयोगी भवस्थ केवली के कितने परीषह कहे गये हैं ?
___३५ उत्तर-हे गौतम ! ग्यारह परीषह कहे गये हैं। किन्तु वह एक साथ नौ परीषह वेदता है। क्योंकि जिस समय शीत परीषह वेदता है, उस समय उष्ण परीषह नहीं वेदता और जिस समय उष्ण परीषह वेदता है, उस . समय शीत परीषह नहीं वेदता । जिस समय चर्या परीषह वेदता हैं, उस समय शय्या परीषह नहीं वेदता और जिस समय शय्या परीषह वेदता है, उस समय चय परीषह नहीं वेदता।
विवेचन-बाईम परोषहों का किन-किन कर्म-प्रकृतियों में समावेश होता है, इस बात को बतलाने के लिये पहले आठ कर्मों के नाम बतलाये हैं। . .
__ परीषह-आपत्ति आने पर भी संयम में स्थिर रहने के लिये तथा कर्मों की निर्जरा के लिये जो शारीरिक और मानसिक कष्ट साधु-साध्वियों को सहने चाहिये, उन्हें 'परीषह' कहते हैं । वे बाईम हैं । उनके नाम और अर्थ इस प्रकार हैं
. १ क्षुधा परीपह-भूख का परीषह । संयम की मर्यादानुसार निर्दोष आहार न मिलने पर मुनियों को भूख का कष्ट होता है । इस कष्ट को सहना चाहिये, किन्तु मर्यादा का उल्लंघन नहीं करना चाहिये । इसी प्रकार दूसरे परीषहों के विषय में भी जानना चाहिये। . २ पिपासा परीषह-प्यास का परोषह ।
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