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भगवती सूत्र-श. ८ उ. ८ कर्म-प्रकृति और परीषह
वेएइ, जं समयं उसिणपरीसहं वेएइ णो तं समयं सीयपरीसहं वेएइ, जं समयं चरीयापरिसहं वेएइ णो तं समयं सेजापरीसहं वेएइ, जं समयं सेजापरीसहं वेएइ णो तं समयं चरियापरीसहं वेएइ ।
__भावार्थ-३० प्रश्न-हे भगवन् ! सात प्रकार के कर्म बांधने वाले जीव के कितने परीषह होते हैं ? |
३० उतर-हे गौतम ! उसके बाईम परीषह होते हैं, परन्तु वह जीव एक साथ बीस परीषहों को वेदता है। क्योंकि जिस समय शीत परीषह वेदता है, उस समय उष्ण परीषह नहीं वेदता और जिस समय उष्ण परीषह वेदता है, उस समय शीत परीषह नहीं देदता। जिस समय चर्या परीषह वेदता है, उस समय निषदया परोषह नहीं वेदता और जिस समय निषदया परीषह वेदता है, . उस समय चर्या परीषह नहीं वेदता ।
३१ प्रश्न-हे भगवन् ! आठ प्रकार के कर्मों को बांधने वाले जीव के कितने परीषह कहे गये हैं ?
३१ उत्तर-हे गौतम ! बाईस परीषह कहे गये हैं। यथा-क्षुधा परीषह, पिपासा परोषह, शीत परीषह, दंशमशक परीषह यावत् अलाभ परीषह। किन्तु वह एक साथ बीस परीषहों को वेदता है।
३२ प्रश्न-हे भगवन् ! षड्-विध बन्धक सराग छद्मस्थ के कितने परीषह कहे गये हैं ?
३२ उत्तर-हे गौतम ! चौदह परीषह कहे गये हैं, किंतु वह एक. साथ बारह परीषह वेदता है । जिस समय शीत परीषह वेदता है, उस समय उष्ण परीषह नहीं वेदता और जिस समय उष्ण परीषह वेदता है, उस समय शीत परीषह नहीं वेदता। जिस समय चर्या परीषह वेदता है, उस समय शय्या परीवह नहीं वेदता और जिस समय शय्या परीषह वेदता है, उस समय चर्या परीषह नहीं वेदता।
३३ प्रश्न-हे भगवन् ! एक-विध बन्धक वीतराग छपस्थ जीव के
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