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भगवती सूत्र--1. ८ उ. ८ कर्म-प्रकृति और परीपद
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अभव्य जीव की अपेक्षा 'अनादि-अपर्यवमित' यह चौथा भंग घटित होता है । 'सादिअपर्यवसित' यह दूसरा भंग किसी भी जीव में घटित नहीं होता। क्योंकि उपशम-श्रेणी में गिरा हुआ जीव ही सादि-साम्परायिक बन्धक होता है और वह कालान्तर में अवश्य मोक्षगामी होता है । उस समय साम्परायिक बन्ध का व्यवच्छेद हो जाता है । इस प्रकार 'सादि-अपर्यवसित' माम्परायिक बन्धक नहीं होता ।
कर्म-प्रकति और परीषह
. २२ प्रश्न- कइ णं भंते ! कम्मप्पगडीओ पण्णत्ताओ? . २२ उत्तर-गोयमा ! अट्ट कम्मप्पगडीओ पण्णत्ताओ, तं जहाणाणावरणिज्जं, जाव अंतराइयं । . - २३ प्रश्न-कइ णं भंते ! परिसहा पण्णत्ता ?
२३ उत्तर-गोयमा ! बावीसं परिसहा पण्णत्ता, तं जहादिगिंापरिसहे, पिवासापरिसहे, जाव, देसणपरिसहे । ____ २४ प्रश्न-एए णं भंते ! वावीसं परिसहा कइसु कम्मपयडीसु समोयरंति ? - - २४ उत्तर-गोयमा ! चउसु कम्मपयडीसु समोयरंति, तं जहा
णाणावरणिजे, वेयणिजे, मोहणिजे, अंतराइए। - कठिन शब्दार्थ-समोयरंति--समावेश होता है।
भावार्थ-२२ प्रश्न-हे भगवन् ! कर्म प्रकतियां कितनी कही गई हैं ?
२२ उत्तर-हे गौतम ! कर्म प्रकृतियां आठ कही गई हैं । यथा-ज्ञाना. धरणीय, यावत् अन्तराय ।
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