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________________ भगवती सूत्र--1. ८ उ. ८ कर्म-प्रकृति और परीपद १४५१ अभव्य जीव की अपेक्षा 'अनादि-अपर्यवमित' यह चौथा भंग घटित होता है । 'सादिअपर्यवसित' यह दूसरा भंग किसी भी जीव में घटित नहीं होता। क्योंकि उपशम-श्रेणी में गिरा हुआ जीव ही सादि-साम्परायिक बन्धक होता है और वह कालान्तर में अवश्य मोक्षगामी होता है । उस समय साम्परायिक बन्ध का व्यवच्छेद हो जाता है । इस प्रकार 'सादि-अपर्यवसित' माम्परायिक बन्धक नहीं होता । कर्म-प्रकति और परीषह . २२ प्रश्न- कइ णं भंते ! कम्मप्पगडीओ पण्णत्ताओ? . २२ उत्तर-गोयमा ! अट्ट कम्मप्पगडीओ पण्णत्ताओ, तं जहाणाणावरणिज्जं, जाव अंतराइयं । . - २३ प्रश्न-कइ णं भंते ! परिसहा पण्णत्ता ? २३ उत्तर-गोयमा ! बावीसं परिसहा पण्णत्ता, तं जहादिगिंापरिसहे, पिवासापरिसहे, जाव, देसणपरिसहे । ____ २४ प्रश्न-एए णं भंते ! वावीसं परिसहा कइसु कम्मपयडीसु समोयरंति ? - - २४ उत्तर-गोयमा ! चउसु कम्मपयडीसु समोयरंति, तं जहा णाणावरणिजे, वेयणिजे, मोहणिजे, अंतराइए। - कठिन शब्दार्थ-समोयरंति--समावेश होता है। भावार्थ-२२ प्रश्न-हे भगवन् ! कर्म प्रकतियां कितनी कही गई हैं ? २२ उत्तर-हे गौतम ! कर्म प्रकृतियां आठ कही गई हैं । यथा-ज्ञाना. धरणीय, यावत् अन्तराय । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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