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भगवती सूत्र - श८ उ. ८ कर्म प्रकृति और परीवह
२३ प्रश्न - हे भगवन् ! परीषह कितने कहे गये हैं ?
२३ उत्तर - हे गौतम ! परीषह बाईस कहे गये हैं। यथा-१ क्षुधा परीबह, २ पिपासा परीषह यावत् (३ शीत परीषह, ४ उष्ण परोषह ५ दंशमशक परीषह, ६ अचेल परीषह, ७ अरति परीषह, ८ स्त्री परीषह, ९ चर्या परीषह, १० निसीहिया (निषदचा ) परीषह, ११ शय्या परीषह, १२ आक्रोश परीषह, १३ वध परीषह, १४ याचना परीषह, १५ अलाभ परीषह, १६ रोग परीषह, १७ तृणस्पर्श परीषह, १८ जल्ल परीषह, १९ सत्कारपुरस्कार परीषह, २० प्रज्ञा परीषह २१ अज्ञान परीषह) २२ दर्शनपरीषह ।
२४ प्रश्न - हे भगवन् ! कितनी कर्मप्रकृतियों में इन वाईस परीषहों का समवतार ( समावेश) होता है ?
२४ उत्तर - हे गौतम! चार कर्म प्रकृतियों में बाईस परीषहों का समवतार होता है । यथा-ज्ञानावरणीय, वेदनीय, मोहनीय और अन्तराय ।
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२५ प्रश्न - णाणावरणिजे णं भंते ! कम्मे कह परीसहा रुमोय
रंति ?
२५ उत्तर - गोयमा ! दो परीसहा समोयरंति, तं जहा - पण्णापरीस णाणपरीस य ।
२६ प्रश्न - वेयणि णं भंते! कम्मे कह परीसहा समोयरंति ?
२६ उत्तर - गोयमा ! एक्कारस परीसहा समोयरंति, तं जहा
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"पंचेव आणुपुव्वी चरिया सेज्जा वहे य रोगे य । तणकास- जल्लमेव य एक्कारस वेयणिज्जम्मि || "
२७ प्रश्न - दंसणमोहणिजे णं भंते ! कम्मे कह परीसहा
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