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भगवती सूत्र-श. ८ उ. ८ एपिथिक और साम्परायिक बन्ध
सकते हैं।
ऐर्यापथिक कर्म-बन्ध के विषय में काल की अपेक्षा जो आठ भंग कहे थे, उन में से साम्परायिक कर्म-बन्ध के विषय में चार भंग ही पाये जाते हैं। क्योंकि जीवों के साम्परायिक कर्म-बन्ध अनादिकाल से हैं। इसलिये भूतकाल सम्बन्धी ‘ण बन्धी-नहीं बान्धा था।' ये चार भंग नहीं बन सकते । जो चार भंग बन सकते हैं. वे ये हैं-(१) बांधा था बाँधता है, बाँधेगा। (२) बाँधा था, बांधता है, नहीं बाँधेगा। (३) बांधा था, नहीं बांध रहा, बाँधेगा। (४) बांधा था, नहीं बांधता है, नहीं बाँधेगा। प्रथम भंग यथाख्यात चारित्र की प्राप्ति से दो समय पहले तक सर्व संसारी जीवों में पाया जाता है, क्योंकि भूतकाल में उन्होने साम्परायिक कर्म वाँधा था, वर्तमान. में बाँधते हैं और भविष्यत् काल में यथाख्यात चारित्र की प्राप्ति के पहले तक बाँधेगे। अथवा यह प्रथम भंग अभव्य जीव की अपेक्षा भी घटित हो सकता है ।
दूसरा भंग भव्य जीव की अपेक्षा से है । मोहनीय कर्म के भय से पहले उसने . साम्परायिक कर्म बाँधा था, वर्तमान में बांधता है और आगामी काल में मोह-क्षय की अपेक्षा नहीं बाँधेगा।
तीसरा भंग उपशम-श्रेणी प्राप्त जीव की अपेक्षा है। उपशम-श्रणी करने के पूर्व उसने साम्परायिक कर्म बांधा था, वर्तमान में उपशान्त-मोह होने से नहीं बांधता और उपशम श्रेणी से गिर जाने पर आगामी काल में फिर बाँधेगा।
चौथा भंग क्षपक-श्रेणी प्राप्त क्षीणमोह जीव की अपेक्षा है। मोहनीय कर्म का क्षय करने के पूर्व उसने साम्परायिक कर्म वांधा था, वर्तमान में मोहनीय कर्म का क्षय हो जाने से नहीं बाँधता और बाद में मोक्ष चला जायगा, इसलिये आगामी काल में नहीं बाँधेगा।
___माम्परायिक कर्म बन्ध के विषय में आदि अन्त की अपेक्षा चार प्रश्न किये गये हैं। यथा-(१) सादि सपर्यवसित (२) सादि अपर्यवसित (३) अनादि सपर्यवसित (४) अनादि अपर्यवसित । इन चार भंगों में से-सादि-अपयंवसित भंग को छोड़कर शेष तीन भंगों से जीव साम्परायिक कर्म बांधता है । इनमें से जो जीव उपशम-श्रेणी कर के गिर गया है और आगामी काल में फिर उपशम-श्रेणी या क्षपक-श्रेणी को अंगीकार करेगा, उसकी अपेक्षा 'सादि-सपर्यवसित'-यह प्रथम भंग घटित होता है । जो जीव प्रारम्भ में ही क्षपकश्रेणी करने वाला है, उसकी अपेक्षा 'अनादि-सपर्यवसित' यह तृतीय भंग घटित होता है।
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