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भगवती सूत्र-श. ८ उ. ८ ऐपिथिक और सांपरायिक बंध
विकल्प में ऐपिथिक कम का बन्ध होता है। शेष तीन में नहीं।
जीव के साथ ऐर्यापथिक कर्म-वन्ध के चार विकल्पों सम्बन्धी प्रश्न । यथा(१) देश से देश-बन्ध-जीव के एक देश से कर्म के एक देश का बन्ध । (२) देश से सर्वबन्ध-जीव के एक देश से सम्पूर्ण कर्म का बन्ध । (३) सर्व से देशबन्ध-सम्पूर्ण जीव से कर्म के एक देश का बन्ध ।
(४) सर्व से सर्व-बन्ध-सम्पूर्ण जीव से सम्पूर्ण कर्म का बन्ध । इनमें से चाये विकल्प में कर्म का वन्ध होता है, क्योंकि जीव का ऐसा ही स्वभाव है । शेष तीन विकल्पों से जीव के माथ कर्म का बन्ध नहीं होता।
. सम्पराय का अर्थ है-कषाय' । कषाय के निमित्त से बन्धने वाले कर्म-बन्ध को 'साम्परायिक बन्ध' कहते हैं । साम्परायिक बन्ध के विषय में यहाँ सात प्रश्न किये गये हैं और उनका उत्तर भी दिया गया है। उन सात में से नैरयिक, तिर्यञ्च, तिर्यञ्चिनी, देव और देवी, ये पांच तो सकपायर्या होने से सदा साम्परायिक बंधक होते हैं। मनुष्य और मनुष्यिनी, सकपायी अवस्था में साम्परायिक बन्धक होते हैं और जब ये अकषायी हो जाते हैं तब माम्पगयिक बन्धक नहीं होते।
इसके पश्चात् स्त्री, पुरुष और नपुंसक इनकी अपेक्षा एक वचन और बहुवचन आश्रयी प्रश्न किया गया है । जिसके उत्तर में कहा गया है कि एकत्व विवक्षित और बहुत्व विवक्षित स्त्री, पुरुष और नमक । ये छह सदा साम्परायिक कर्म बान्धते है। क्योंकि ये सब सवदी हैं । अवेदी कादाचित्क (कभी कभी) पाया जाता है, इसलिये वह कदाचित् साम्परायिक कर्म बाँधता है । अतः स्त्र्यादिक छह साम्परायिक कर्म बांधते हैं । अथवा स्त्र्यादिक छह और वेद रहित एक जीव साम्परायिक कर्म बांधते हैं। क्योंकि वेद रहित जोव एक भी पाया जा सकता है । अथवा स्त्र्यादिक छह और वेद रहित बहुत जीव साम्परायिक कर्म बांधते हैं । क्योंकि वेद रहित जीव, बहुत भी पाये जा सकते हैं । तीनों वेदों के उपशान्त या भय हो जाने पर जबतक जीव, यथाख्यात चारित्र को प्राप्त नहीं करता, तबतक वह वेद रहित जीव, सांपयिक बन्धक होता है। यहाँ पूर्व-प्रतिपन्न और प्रतिपद्यमान की विवक्षा नहीं की गई । क्योंकि दोनों में भी एकत्व और बहुत्व पाया जा सकता है. इसलिये विशेषता का अभाव है। जैसे कि-वंद रहित हो जाने पर साम्परायिक बंध अल्पकालीन होता है । इसलिये पूर्व-प्रतिपन्न वेद रहित जीव सांपरायिक कर्म को बांधने वाले एक या अनेक भी हो सकते हैं । इसी प्रकार प्रतिपद्यमान जीव भी एक या अनेक हो
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