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भगवती सूत्र-श. ८ उ. ८ ऐर्यापथिक और सांपरॉयिक बन्ध
में फिर उपशम श्रेणी करने पर.ऐर्यापथिक कर्म बांधेगा। क्योंकि एक भव में एक जीव, दो बार उपशम श्रेणी कर सकता है । चौथा भंग चौदहवें गुणस्थान के प्रथम समय में पाया जाता है । सयोगी अवस्था में उसने ऐर्यापथिक कर्म बांधा था, किन्तु एक समय पश्चात् ही चौदहवें गुणस्थान की प्राप्ति हो जाने पर शैलेशी अवस्था में नहीं बांधता और वह आगामी काल में भी नहीं बांधेगा। पांचवां भंग उस जीव में पाया जाता है जिसने आयुष्य के पूर्वभाग में उपशम-श्रेणी आदि नहीं की, इसलिये नहीं बांधा, वर्तमान समय में श्रेणी प्राप्त की है इसलिये बांधता है और भविष्य में भी बांधेगा । छठा भंग शून्य है । यह किसी भी जीव में नहीं पाया जाता । क्योंकि 'नहीं बांधा था और बांधता है,' ये दो बातें तो पाई जा सकती है, किन्तु 'नहीं बांधेगा'-यह बात नहीं पाई जा सकती, अर्थात् छठा भंग है-नहीं बांधा था, बांधता है, नहीं बांधेगा। किसी जीव ने आयुष्य के पूर्वभाग में उपशम-श्रेणी आदि प्राप्त नहीं की थी, इसलिये ऐर्यापथिक कर्म नहीं बांधा था । वर्तमान समय में श्रेणी प्राप्त की है इसलिये बांधता है, किन्तु उसके बाद के समयों में नहीं बांधेगा'-यह बात घटित नहीं होती। क्योंकि ऐपिथिक कर्म-बन्ध एक समय मात्र का नहीं है । यद्यपि उपशम श्रेणी को प्राप्त हुआ कोई जीव, एक समय के पश्चात् ही काल कर जाता है, उसकी अपेक्षा ऐर्यापथिक कर्म-बन्ध एक समय मात्र का होता है, किन्तु वह छठे विकल्प का कारण नहीं बन सकता । क्योंकि उसके पश्चात् ऐर्यापथिक कर्मबन्ध का अभाव उसी भव में नहीं होता, भवान्तर में होता है और यहां पर ग्रहणाकर्ष रूप एक भव आश्रयी प्रकरण चल रहा है । यदि यह कहा जाय कि सयोगी-केवली गुणस्थान के अन्तिम समय की अपेक्षा यह भंग घटित हो जायगा । क्योंकि वह उस समय ऐपिथिक कर्म बांधता है और आगामी काल में नहीं बांधेगा, तो यह कहना भी ठीक नहीं है । क्योंकि जो जीव सयोगी-केवली गुणस्थान के अन्तिम समय में ऐपिथिक कर्म बांधता है। उसने उसके पूर्व समय में निश्चित रूप से ऐर्यापथिक कर्म बांधा था। इस तरह उपर्युक्त कथन का समावेश दूसरे भंग में होता है, किन्तु इससे छठा भंग नहीं बन सकता । सातवा भंग भव्य विशेष की अपेक्षा से है और आठवां भंग अभव्य की अपेक्षा से है।
(१) सादि सपर्यवसित-आदि और अन्त सहित । (२) सादि अपर्यवसित-जिसकी आदि तो है, किन्तु अन्त नहीं। (३) अनादि सपर्यवसित-जिसकी आदि तो नहीं, किन्तु अन्त हैं। (४) अनादि अपर्यवसित-आदि और अन्त रहित । इन चार विकल्पों में से प्रथम
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