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भगवती सूत्र -श. ८. उ.८ ऐर्यापथिक और सांपरायिक बंध
या क्षपक श्रेणी करेगा, उसमें बांधेगा ।
(४) चौथा भंग है - बांधा था, नहीं बांधता, नहीं बांधेगा। यह उस जीव में पाया जाता है, जो वर्तमान में चौदहवें गुणस्थान में विद्यमान है। उसने पूर्व काल में बांधा था, वर्तमान में नहीं बांधता और आगामी काल में भी नहीं बांधेगा ।
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(५) पांचवां भंग है- नहीं बांधा था, बांधता है, बांधेगा। यह उस जीव में पाया जाता है, जिसने पूर्वभव में उपशम-श्रेणी नहीं की थी, इसलिये ऐर्यापथिक कर्म नहीं बांधा था, वर्तमान भव में उपशम-श्रेणी में बांधता है । आगामी भव में उपशप-श्रेणी या क्षपकश्रेणी में बांधेगा ।
(६) छठा भंग है- नहीं बांधा था, बांधता है, नहीं बांधेगा । यह भंग उस जीव में पाया जाता है, जिस जीव ने पूर्व भव में उपशम-श्रेणी नहीं की थी, इसलिये ऐर्यापथिक कर्म नहीं बांधा था । वर्तमान भव में क्षपक श्रेणी में बांधता है । फिर उसी भव में मोक्ष चला जावेगा इसलिये आगामी काल में नहीं बांधेगा ।
(७) सातवां भंग है - नहीं बांधा था, नहीं बांधता है, बांधेगा। यह भंग उस जीव में पाया जाता है जो जीव भव्य है, किंतु भूतकाल में उपशम श्रेणी नहीं की, इसलिये नहीं था। वर्तमान काल में भी उपशम-श्रेणी आदि नहीं करता, इसलिये नहीं बांधता, किंतु आगामी काल में उपशम श्रेणी या क्षपकश्रेणी करेगा, उसमें बांधेगा |
( ८ ) आठवां भंग है - नहीं बांधा था, नहीं बांधता और नहीं बांधेगा। यह भंग अभव्य जीव में पाया जाता है । अभव्य जीव ने पूर्वभव में ऐर्यापथिक कर्म नहीं बांधा था, . वह वर्तमान भव में नहीं बांधता और आगामी भव में भी नहीं बांधेगा । क्योकि अभव्य जीव ने उपशम या क्षपक श्रेणी नहीं की, नहीं करता और नहीं करेगा ।
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'ग्रहणाकर्ष' अर्थात् एक ही भव में ऐर्यापथिक कर्म पुद्गलों का ग्रहणरूप आकर्ष जिसमें हो, उसे 'ग्रहणाकर्ष' कहते हैं। उसकी अपेक्षा प्रथम भंग उस जीव में पाया जाता है जिसने भूतकाल में उपगम श्रेणी या क्षपक श्रेणी के समय ऐर्यापथिक कर्म बांधा था । वर्तमान काल में श्रेणी में बांधता है और आगामी काल में बांधेगा। दूसरा भंग तेरहवें गुणस्थान में एक समय शेष रहते समय पाया जाता है, क्योंकि उसने भूतकाल में बांधा था, वर्तमान काल में बांधता है और आगामी काल में शैलेशी अवस्था में नहीं बांधेगा । तीसरा अंग उस जीव में पाया जाता है जो उपशम-श्रेणी करके उससे गिर गया है । उसने उपशमश्रेणी के समय ऐर्यापथिक कर्म बांधा था। अब वर्तमान में नहीं बांधता और उसी भव
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