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________________ भगवता सूत्र - श. ८ उ ८ व्यवहार के भेद अनिश्रपश्रित ( राग-द्वेष के त्यागपूर्वक ) | भावार्थ - ७ प्रश्न - हे भगवन् ! व्यवहार कितने प्रकार के कहे गये है ? ७ उत्तर - हे गौतम ! व्यवहार पांच प्रकार के कहे गये हैं । यथा१ आगम व्यवहार, २ श्रुत व्यवहार, ३ आज्ञा व्यवहार, ४ धारणा व्यवहार, और ५ जीत व्यवहार । इन पांच प्रकार के व्यवहारों में से जिसके पास आगम- ज्यव हार हो, उसे आगम-व्यवहार से कार्य चलाना चाहिये। जिसके पास आगम व्यवहार न हो, उसे श्रुत व्यवहार से कार्य चलाना चाहिये। जिसके पास श्रुत व्यवहार न हो, उसे आज्ञा-व्यवहार से कार्य चलाना चाहिये। जिसके पास आज्ञाव्यवहार न हो, उसे धारणा व्यवहार से कार्य चलाना चाहिये। जिसके पास धारणा न हो, उसे जीत व्यवहार से कार्य चलाना चाहिये। इस प्रकार इन पांच व्यवहारों से कार्य चलाना चाहिये । उपरोक्त रीति के अनुसार आगम, श्रुत, आज्ञा, धारणा और जीत, इन व्यवहारों में से जिसके पास जो व्यवहार हो, उससे कार्य चलाना चाहिये । १४३३ ८ प्रश्न - हे भगवन् ! आगम-बलिक श्रमण निर्ग्रन्थ क्या कहते हैं ? ८ उत्तर - हे गौतम ! इन पांच प्रकार के व्यवहारों में से जिस समय जो व्यवहार हो, उससे अनिश्रपश्रित ( रागद्वेष के त्यागपूर्वक) भली प्रकार से व्यवहार चलाता हुआ श्रमण-निर्ग्रन्थ, आज्ञा का आराधक होता है । विवेचन - मोक्षाभिलाषी आत्माओं की प्रवृत्ति, निवृत्ति एवं तत्कारणक ज्ञान विशेष को 'व्यवहार' कहते हैं । उसके उपरोक्त पाँच भेद हैं । उनका स्वरूप इस प्रकार है१ आगम व्यवहार- केवल ज्ञान, मन:पर्यय ज्ञान, अवधि ज्ञान, चौदह पूर्व, दस पूर्व और नव पूर्व का ज्ञान 'आगम' कहलाता है । आगम ज्ञान से प्रवर्तित प्रवृत्ति निवृत्ति रूप व्यवहार - 'आगम व्यवहार' कहलाता है । Jain Education International २ श्रुत व्यवहार-आचार प्रकल्प आदि ज्ञान श्रुत है। इससे प्रवर्ताया जाने वाला व्यवहार 'श्रुत-व्यवहार' कहलाता है। नव, दस और चौदह पूर्व का ज्ञान भी श्रुतरूप है, परन्तु अतीन्द्रिय अर्थ विषयक विशिष्ट ज्ञान का कारण होने से उक्त ज्ञान अतिशय वाला है । इसलिये वह 'आगमरूप' माना गया 1 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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