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________________ भगवती सूत्र-ग. ८ उ. ७ अन्य-तीथिक और स्थविर संवाद 4 . . लगना बतलाया गया है, वह औदारिकादि शरीराश्रित तेजस्-कार्मण की अपेक्षा समझना चाहिये । क्योंकि स्वयं तेजस्-कार्मण शरीर को तो परिताप नहीं पहुंचाया जा सकता। ॥ इति आठवें शतक का छठा उद्देशक सम्पूर्ण ॥ शतक ८ उद्देशक ७ अन्य-तीर्थिक और स्थविर संवाद . १-तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णयरे, वण्णओ, गुणसिलए चेइए, वण्णओ, जाव पुढविसिलावट्टओ। तस्स णं गुणसिलस्स चेइयस्म अदूरसामंते वहवे अण्णउत्थिया परिवसंति । तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे जाव समोसढे; जाव परिसा पडिंगया । तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे अंतेवासी थेरा भगवंतो जाइसंपण्णा, कुलसंपण्णा, जहा बिइयसए जाव जीवियास-मरणभय-विप्पमुक्का, समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते उड्ढंजाणू अहोसिरा, झाणकोट्ठोवगया संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणा जाव विहरति । कठिन शब्दार्थ--जीवियास--जीने की आशा, मरणभयविप्पमुका--मरने के भय से विमुक्त, अदूरसामंते--निकट (आसपास), उड्ढूजाणू--ऊध्र्व जानु, अहोसिरानीचा मस्तक, माणकोट्ठोवगया--ध्यान रूपी कोठे में रहे हुए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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