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भगवती सूत्र - श. ८ उ. ६ अकृत्य सेवी आराधक ?
प्रकार साधु के तीन आलापक कहे है, उसी प्रकार साध्वी के भी तीन आलापक कहना चाहिये, किन्तु इतनी विशेषता है कि 'स्थविर' शब्द के स्थान पर 'प्रवर्तिनी' शब्द का प्रयोग करना चाहिये ।
१४ प्रश्न - से केणट्टेणं भंते ! एवं बुच्चइ - आराहए, णो विरा
हए ?
१४ उत्तर - गोयमा ! से जहा णामए - केइ पुरिसे एगं महं उष्णालोमं वा, गयलोमं वा, सणलोमं वा, कप्पासलोमं वा, तणसूयं वा दुहा वातिहा वा संखेनहावा छिंदित्ता अगणिकायंसि पक्खिवेज्जा, से णूणं गोयमा ! छिजमाणे छिण्णे, पक्खिप्पमाणे पविखत्ते, डज्झमाणे दड्ढेत्ति वत्तव्वं सिया ? हंता भगवं ! छिज्जमाणे छिण्णे, जाव दड्ढेत्ति वत्तव्वं सिया । से जहा वा केइ पुरिसे वत्थं अहयं वा धोयं वा, तंतुग्गयं वा मंजिट्ठादोणीए पक्खिवेज्जा, से णूणं गोयमा ! उक्खिप्पमाणे उक्खिते, पक्खिप्पमाणे पखित्ते, रज्जमाणे रत्तेत्ति वत्तव्वं सिया ? हंता भगवं ! उक्खिप्पमाणे उक्खित्ते जाव रत्तेत्ति वत्तव्वं सिया । से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ - आराहए णो विराहए ।
कठिन शब्दार्थ - उण्णालोमं - ऊन के रोम, गयलोमं - हाथी के रोम, अहयं - अक्षत - ( अखंड – नया ) ।
भावार्थ - १४ प्रश्न - हे भगवन् ! ऐसा क्यों कहा गया कि - ' वे आराधक है, विराधक नहीं ?'
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