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भगवता सूत्र-श. ८ उ. ६ अकृत्यसेवी आराधक ?
१० उत्तर-हे गौतम ! वह मुनि आराधक है, विराधक नहीं।
११ प्रश्न-उपर्युक्त अकार्य का सेवन करने वाला मुनि स्वयं आलोच. नादि करके स्थविर मुनियों के पास आलोचना करने के लिये निकला और वह वहां पहुंच गया, तत्पश्चात् वे स्थविर मुनि वात आदि दोष के कारण मक हो गये, तो हे भगवन् ! वह मुनि आराधक है, या विराधक ?
११ उत्तर-हे गौतम ! वह आराधक है, विराधक नहीं। जिस प्रकार असंप्राप्त (स्थविरों के पास न पहुंचे हुए) मुनि के चार आलापक कहे गये, उसी प्रकार सम्प्राप्त (स्थविरों की सेवा में पहुंचे हुए) मनि के चार आलापक कहना चाहिये।
१२-णिग्गंथेण य बहिया वियारभूमि वा विहारभूमि वा णिक्खतेणं अण्णयरे अकिचट्टाणे पडिसेविए, तस्स णं एवं भवइइहेव ताव अहं०-एवं एत्थ वि ते चेव अट्ठ आलावगा भाणियव्या; जाव णो विराहए । णिग्गंथेण य गामाणुगाम दुइजमाणेणं अण्णयरे अकिचट्ठाणे पडिसेविए, तस्स णं एवं भवइ-इहेव ताव अहं०, एत्थ वि ते चेव अट्ठ आलावगा भाणियव्वा, जाव णो विराहए। ___ १३ प्रश्न-णिग्गंथीए य गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुपविट्ठाए अण्णयरे अकिच्चट्टाणे पडिसेविए; तीसे णं एवं भवइइहेव ताव अहं एयस्स ठाणस्स आलोएमि, जाव तमोकम्मं पडिवज्जामि, तओ पच्छा पवत्तिणीए अंतियं आलोएस्सामि, जाव पडिवज्जिस्सामि । सा य संपट्टिया असंपत्ता पवत्तिणी य अमुहा
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