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भगवती सूत्र-श. ८ उ. ६ अकृत्य सेवी आराधक ?
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में गोचरी गया, वहां उस साधु द्वारा (मल गुणादि में दोष रूप) कृत्य का सेवन हो गया हो और तत्क्षण उसके मन में ऐसा विचार उत्पन्न हो कि-'प्रथम में यहीं पर इस कृत्य स्थान की आलोचना, प्रतिक्रमण, निन्दा और गर्दा करूं, उसके अनुबन्ध का छेदन करूँ, इससे विशुद्ध बनूं, भविष्य में ऐसा कार्य न करने की प्रतिज्ञा करूं तथा यथोचित प्रायश्चित और तपःकर्म स्वीकार करलू। फिर मैं यहाँ से जाकर स्थविर मनियों के पास आलोचना करूंगा यावत् यथोचित तपः-कर्म स्वीकार करूंगा।' ऐसा विचार कर वह मुनि, स्थविर मुनियों के पास जाने के लिये निकला । उन स्थविर मुनियों के पास पहुँचने के पूर्व ही वे स्थविर मुनि वात आदि दोष के प्रकोप से मक हो जाय (वे बोल नहीं सकें) और इसी कारण वे प्रायश्चित्त न दे सकें, तो हे भगवन् ! वह मुनि आराधक है या विराधक ?
७ उत्तर-हे गौतम ! वह आराधक है, विराधक नहीं।
८ प्रश्न-उपर्युक्त अकार्य का सेवन करनेवाले मुनि ने स्वयं आलोचनादि करली, फिर स्थविर मनियों के पास आलोचना करने के लिये निकला, किंतु वहाँ पहुचने के पूर्व ही वह स्वयं वात आदि दोष के कारण मूक हो जाय, तो हे भगवन् ! वह मुनि आराधक है, या विराधक ?
८ उत्तर-हे गौतम ! वह मुनि आराधक है, विराधक नहीं। ____९ प्रश्न-उपर्युक्त अकार्य सेवन करनेवाला मुनि, स्वयं आलोचनादि करके स्थविर मुनियों के पास आलोचना करने को निकला, किन्तु वहाँ पहुँचने के पूर्व ही वे स्थविर मुनि काल कर गये, तो हे भगवन् ! वह मुनि आराधक है, या विराधक ?
६ उत्तर-हे गौतम ! वह मुनि आराधक है, विराधक नहीं।
१० प्रश्न-उपर्युक्त अकार्य का सेवन करनेवाला मुनि, स्वयं आलोचनादि करके स्थविर मुनियों के पास आलोचना करने के लिये निकला, किन्तु वहां पहुंचने के पूर्व ही वह स्वयं काल कर जाय, तो हे भगवन् ! वह मुनि आराधक है, या विराधक ?
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