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भगवती सूत्र-श. ८ उ. ६ अकृत्यसेवी आराधक ?
७ उत्तर-गोयमा ! आराहए, णो विराहए ।
८ प्रश्न-से य संपट्ठिए असंपत्ते अप्पणा य पुवामेव अमुहे सिया, से णं भंते ! किं आराहए, विराहए ?
८ उत्तर-गोयमा ! आराहए, णो विराहए।
९ प्रश्न-से य संपट्ठिए असंपत्ते थेरा य कालं करेजा, से णं भंते ! किं आराहए, विराहए ?
९ उत्तर-गोयमा ! आराहए, णो विराहए।
१० प्रश्न-से य संपट्ठिए असंपत्ते अप्पणा य पुव्वामेव कालं करेजा, से णं भंते ! किं आराहए, विराहए ?
१० उत्तर-गोयमा ! आराहए, णो विराहए। .
११ प्रश्न-से य संपट्ठिए संपत्ते, थेरा य अमुहा सिया से णं. भंते ! किं आराहए, विराहए ?
११ उत्तर-गोयमा ! आराहए, णो विराहए । से य संपद्विए संपत्ते, अप्पणा य०-एवं संपत्तेण वि चत्तारि आलावगा भाणियव्वा जहेव असंपत्तेणं।
कठिन शब्दार्थ-अकिञ्चट्ठाणे-अकृत्य स्थान ( मूल गुणादि में दोष सेवन रूप अकार्य विशेष )पडिसेविए-प्रतिसेवन किया, विउट्टामि--तोड़ दूं ( उसके अनुबन्ध का छेदन कर दूं) विसोहेमि-मैं विशुद्ध करूं, अन्मठेमि-तत्पर वनूं, अहारिहं-यथार्ह-यथोचित, पतिवज्जामिस्वीकार करूं, संपट्ठिए-पहुंचने, अमुहा-अमुखा अर्थात् जिनकी जिव्हा बन्द हो गई हो ।
. भावार्थ-७ प्रश्न-हे भगवन् ! कोई साधु, गाथापति (गृहस्थ) के घर
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