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भगवती सूत्र-श. ८ उ. ६ अकृत्य से बी आराधक ?
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किन्तु दूर खड़ा देखता हो, : जहां कोई आता तो है, परन्तु उसकी ओर देखता नहीं, ४ जहां कोई आता भी है और देखता भी है-ये चार भंग हैं। इनमें से पहला भंग शुद्ध है बाकी तीन अशुद्ध हैं। - अव स्थण्डिल के दम विशेषण कहे जाते हैं। यथा-१ अनापात असंलोक- जहाँ स्वपक्ष और परपक्ष वाले लोगों में से किसी का आना जाना नहीं हो और दृष्टि भी नहीं पड़ती हो । २ अनुपघातक-जहां संयम और छह काय जीवों की एवं आत्मा की विराधना नहीं हो। ३ मम-जहां ऊँची जगह नहीं होकर समतल-भूमि हो । ४ अशुषिरजहां पोलार नहीं हो और घास तथा पत्तों आदि से ढकी हुई भी नहीं हो अर्थात् साफ खुली हुई भूमि हो। ५ अचिरकाल कृत-जो स्थान दाह आदि से थोड़े काल पहले अचित्त हुई हो। ६ विस्तीर्ण-जो भूमि विस्तृत हो अर्थात् कम से कम एक हाथ लम्बी चौड़ी हो। ७ दूरावगाढ-जहाँ कम से कम चार अंगुल नीचे तक भूमि अचित्त हो। ८ न आसन्न-जहाँ गांव तथा बाग बगीचा आदि अति निकट नहीं हो । ९ बिलवर्जित-जहाँ चूहे आदि का बिल नहीं हो । १० बम-प्राण-बीज रहित-जहाँ बेइन्द्रियादि त्रस जीव तथा शाली आदि बीज नहीं हों । इन दम विशेपणों युक्त स्थण्डिल भूमि में उच्चार आदि (मलमूत्रादि) परठे ।
अकृत्यसेवी आराधक
७ प्रश्न-णिग्गंथेण य गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए पविटेणं अण्णयरे अकिचट्ठाणे पडिसेविए, तस्स णं एवं भवइ-इहेव ताव अहं एयरस ठाणस्स आलोएमि, पडिकमामि, जिंदामि, गरिहामि, विउट्टामि, विसोहेमि, अकरणयाए अन्भुटेमि, अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवजामि; तओ पच्छा थेराणं अंतिअं आलोएस्सामि, जाव तवोकम्म पडिवजिस्सामि । से य संपट्ठिए, असंपत्ते थेरा य पुवामेव अमुहा सिया, से णं भंते ! किं आराहए, विराहए ?
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