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________________ १३६६ भगवती सूत्र - श. ८ उ ६ दूसरों के लिए प्राप्त पिण्ड का उपभोग एगं थेराणं दलयाहि, से य तं पडिग्गाहेज्जा, थेरा य से अणुगवेसि - यव्वा सिया, जत्थेव अणुगवेसमा थेरे पासिज्जा तत्थेव अणुप्प - दायव्वे सिया णो चेव णं अणुगवेसमाणे थेरे पासिजा तं णो अप्पणा भुंजेज्जा, णो अण्णेसिं दावए; एगंते अणावाए अचित्ते बहुफा सुए थंडिल्ले पडिलेहेत्ता पमजित्ता परिडावेयव्वे सिया ।.. " ५- णिग्गंथं च णं गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुप्पविनं के तिहिं पिंडेहिं वणिमंतेजा - एगं आउसो ! अप्पणा भुंजाहि, दो थेराणं दलयाहि; से य ते पडिग्गाहेज्जा थेरा य से अणुगवेसियव्वा, सेसं तं चेत्र जाव परिद्वावेवे सिया, एवं जाव दसहि पिंडेहिं उवणिमंतेजा; णवरं एगं आउसो ! अप्पणा भुंजाहि, णव थेराणं दलयाहि; सेसं तं चेत्र जाव परिवेयव्वे सिया । कठिन शब्दार्थ-गाहाबइकुलं - गृहस्थ के यहाँ, पिडवायपडियाए - आहार ग्रहण करने प्रवेश करे, पिडेहि - पिण्ड (आहार), उवणिमंतेज्जा - उपनिमन्त्रण करे, अपणा जाहि-तुम खाना, थेरे- स्थविर मुनि, पडिग्गाहेज्जा ग्रहण करे, अणुगवेसियच्यागवेषणा करे (खोज करे ), जत्थेव - जहां, पासिज्जा-दिखाई दे, तत्थेव वहां, अणुप्पदायन्येदे देवे, अणावाए-जहां कोई नहीं आवे, थंडिल्ले - स्थंडिल भूमि ( परठने की जगह ) पडिलेहित्ता - प्रतिलेखना करके, पमज्जित्ता-पूंजकर, परिट्ठावेयध्वे - परठे ( डाल दे ) । - भावार्थ - ४ कोई साधु, गृहस्थ के घर आहार लेने के लिये जाय, वहाँ वह गृहस्थ, दो पिण्ड ( दो रोटी या दो लड्डू आदि पदार्थ) बहरावे और ऐसा कहे कि - ' हे आयुष्मन् श्रमण ! इन दो पिण्डों में से एक पिण्ड अप खाना और दूसरा पिण्ड स्थविर मुनियों को देना ।' वह मुनि दोनों पिण्ड ग्रहण करके अपने स्थान पर आवे । वहाँ आकर स्थविर मुनियों को गवेषणा करे । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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