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भगवती सूत्र-श. ७ उ. १ अंगारादि दोष
दुटुस्स पाण-भोयणस्स अट्टे पण्णत्ते ।
२० प्रश्न-अह भंते ! वीतिंगालस्स, वीयधूमस्स, संजोयणादोस. विप्पमुक्कस्स पाण-भोयणस्स के अटे पण्णत्ते ? .
२० उत्तर-गोयमा ! जे णं णिग्गंथे वा जाव पडिग्गाहेत्ता अमुच्छिए जाव आहारेइ; एस णं गोयमा ! वीतिंगाले पाण-भोयणे । जे णं णिग्गंथे वा णिग्गंथी वा जाव पडिग्गाहेत्ता णो महयाअप्पत्तियं जाव आहारेइ, एस णं गोयमा ! वीयधूमे पाण-भोयणे। जे णं णिग्गथे वा णिग्गंथी वा जाव पडिग्गाहेत्ता जहा लधं तहा आहारं आहारेइ, एस णं गोयमा ! संजोयणादोसविप्पमुक्के पाण-भोयणे । एस णं गोयमा ! वीतिंगालस्स, वीयधूमस्स संजोयणादोसविप्पमुक्कस्स पाण-भोयणस्स अट्टे पण्णत्ते ।
कठिन शब्दार्थ-सइंगालस्स-अंगार दोष, संजोयणादोसदुद्रुस्स- आहार में स्वाद के लिए कुछ मिलाने के दोष से दुष्ट हुए, पाणभोयणस्स-भोजनपानी, गढिए-स्नेह युक्त, अज्झोववण्णे-अध्युपपन्न-मोह में एकाग्रचित्त, महयाअप्पत्तियं-अत्यंत अरतिपूर्वक -खिन्न होकर, कोहकिलाम-क्रोधाभिभूत होकर, गणप्पायणहेर्छ-स्वाद उत्पन्न करने के लिए, वीतिगालस्स-अंगार दोष रहित।
भावार्थ-१९ प्रश्न -हे भगवन् ! अंगार (इंगाल) दोष, धूमदोष और संयोजना दोष से दूषित पान-भोजन (आहारपानी) का क्या अर्थ है ?
१९ उत्तर-हे गौतम ! कोई निर्ग्रन्थ साधु अथवा साध्वी, प्रासुक और एषगीय अशन पान खादिम और स्वादिम रूप आहार को ग्रहण करके उसमें मूच्छित, गृद्ध, प्रथित और आसक्त होकर आहार करता है, तो हे गौतम ! यह अंगार दोष से दूषित आहार-पानी कहलाता है। कोई निन्य साधु या साध्वी
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