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भगवती सूत्र-श. ७ उ. १ अंगारादि दोष
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प्रासुक और एषणीय अशन-पान-खादिम-स्वादिम रूप आहार ग्रहण करके अत्यन्त अप्रीतिपूर्वक, क्रोध से खिन्न होकर आहार करता है, तो हे गौतम ! यह 'धूम' दोष से दूषित अशन-पान-भोजन कहलाता है। कोई निर्ग्रन्थ साधु या साध्वी, प्रासुक और एषणीय अशन-पान-खादिम-स्वादिम रूप आहार ग्रहण करके उसमें स्वाद उत्पन्न करने के लिए दूसरे पदार्थों के साथ संयोग करके आहार करता है, तो हे गौतम ! यह संयोजना' दोष से दूषित पान-भोजन कहलाता है । हे गौतम ! इस प्रकार अंगार-दोष, धूम-दोष और संयोजना दोष से दूषित पान. भोजन का अर्थ कहा गया हैं।
२० प्रश्न-हे भगवन् ! अंगार-दोष, धूम-दोष और संयोजना दोष, इन तीन दोषों से रहित पान-भोजन का क्या अर्थ है ?
२० उत्सर-हे गौतम ! जो कोई निर्ग्रन्थ साधु या साध्वी यावत् आहार पानी को ग्रहण करके मूळ रहित आहार करता है, तो हे गौतम ! बह अंगार दोष रहित पान-भोजन कहलाता है । जो निर्ग्रन्थ साधु या साध्वी यावत् अशनाशिको प्रहण करके अत्यन्त अप्रीतिपूर्वक यावत् आहार नहीं करता है, तो हे गौतम ! यह धूमदोष रहित पान-भोजन कहलाता है । जो कोई निम्रन्थ साधु या साध्वी यावत् अशनादि को ग्रहण करके जैसा मिला है, वैसा आहार करता है, किन्तु स्वाद के लिए दूसरे पदार्थों का संयोग नहीं करता, तो हे गौतम ! यह संयोजना दोष रहित पानमो नन कहलाता है। इस प्रकार अंगारदोष, धूमदोष और संयोजनादोष, इन तीन दोषों से रहित पान-मोजन का अर्थ है।
र विवेचन-गवेषणेषणा और ग्रहणेषणा द्वारा प्राप्त निर्दोष आहारादि को खाते समय माण्डला के पांच दोषों को टालकर उपभोग करना-प्रासषणा है । ग्रासषणा के पांच दोष ये हैं;-१ अंगार, २ धूम, ३ संयोजना, ४ अप्रमाण और ५ अकारणः। इन दोषों का विचार साध-मण्डली में बैठ कर भोजन करते समय किया जाता है। इसलिए ये 'माण्डला' के दोष भी कहे जाते हैं । इनका अर्थ इस प्रकार है
(१) अंगार दोष-स्वादिष्ट और सरस आहार करते हुए आहार की या दाता की प्रशंसा करते हुए आहार करना-'अंगार दोष' है । जैसे अग्नि से जला हुआ खदिर आदि
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