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• भगवतो सूत्र-श. ७ उ. १ अगारादि दोष
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विवेचन-यहां मूलपाठ में वोच्तिण्णा' शब्द दिया है, जिसका अर्थ 'क्षीण और अनुदित' होता है, किन्तु टीकाकार ने इसका अर्थ केवल अनुदित लिखा है । यहाँ 'क्षीण और अनुदित' ये दोनों अर्थ रखने से ही संगति ठीक बैठ सकती है, क्योंकि ग्यारहवें उपशान्तमोहनीय गुणस्थान, बारहवें क्षीणमोहनीय गुणस्थान और तेरहवें सयोगी केवली गुणस्थान में, केवल ऐपिथिकी क्रिया पाई जाती है। इनमें से बारहवें और तेरहवें गुणस्थान में तो कषाय का सर्वथा क्षय हो चुका है और ग्यारहवें गुणस्थान में कषाय का क्षय नहीं हो र, उपशम होता है अर्थात् कषाय उदयावस्था में नहीं रहता। अतः 'वोच्छिण्णा' शब्द के हहां 'अनुदित और क्षीण' ये दोनों अर्थ लेना ही संगत है ।
अंगारादि दोष
१९ प्रश्न-अह भंते ! सइंगालस्स, सधूमस्स, संजोयणादोसदुट्ठस्स पाण-भोयणस्स के अटे पण्णत्ते ? . ..
१९ उत्तर-गोयमा ! जे णं णिगंथे वा णिग्गंथी वा फासु. एसणिजं असण-पाण-खाइम-साइमं पडिग्गाहेत्ता मुच्छिए, गिद्दे, गढिए, अझोपवण्णे आहार आहारेइ, एस णं गोयमा ! सइंगाले पाण-भोयणे। जे णं णिग्गथे वा, णिग्गंथी वा फासु-एसणिजं असणपाण-खाइम-साइमं पडिग्गाहित्ता महयाअप्पत्तियं कोहकिलामं करेमाणे आहारं आहारेइ एस गं गोयमा ! सधूमे पाण-भोयणे । जेणं णिग्गंथे वा २ जाव पडिग्गाहेत्ता गुणुप्पायणहेउं अण्णदव्वेणं सद्धि संजोएत्ता आहारं आहारेइ, एस णं गोयमा! संजोयणादोसट्टे पाणभोयणे । एस णं गोयमा ! सइंगालस्स, सघूमस्स; संजोयणादोस
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