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________________ १०९४ भगवती- -श ७ उ १ ऐर्यापथिकी और साम्परायिकी क्रिया कज्जह: जस्स णं कोह- माण- माया लोभा अवोच्छिष्णा भवंति तस्स णं संपराइया किरिया कज्जर, णो इरियावहिया किरिया कज्जह; अहासुतं रीयमाणस्स हरियावहिया किरिया कज्जह, उस्सुत्तं रीयमाणस्स संपराइया किरिया कज्जह, से णं उस्सुत्तमेव रीयइ से तेणट्टेणं । कठिन शब्दार्थ - अनाउस - उपयोग रहित, चिट्ठमाणस्स खड़े रहते ठहरते, निसीयमाणस्स - बैठते, तुयट्टमाणस्स - सोते हुए के, परिग्गहं-- पात्र पायपुंछनपादप्रोंछन- रजोहरण, गेण्हमाणस्स – ग्रहण करते हुए, णिक्खिवमाणस्स — रखते हुए, वोच्छिण्णा -- नष्ट होगए, क्षय होगए, अहासुतं - यथासूत्र - सूत्रानुसार, रीयमाणस्सकरनेवाले- बरतने वाले, उस्सुतं -- उत्सूत्र - ( सूत्र विरुद्ध ) । भावार्थ- १८ प्रश्न - हे भगवन् ! बिना उपयोग गमन करते हुए, खड़े रहते हुए, बैठते हुए, सोते हुए और इसी प्रकार बिना उपयोग के वस्त्र, पात्र, कम्बल और पादप्रच्छन ( रजोहरण ) ग्रहण करते हुए अनगार को क्या ऐर्याafrat क्रिया लगती है या साम्परायिकी क्रिया लगती है ? १८ उत्तर - हे गौतम! ऐर्यापथिकी क्रिया नहीं लगती, साम्परायिकी क्रिया लगती है ? प्रश्न - हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ? उत्तर - हे गौतम! जिस जीव के क्रोध, मान, माया और लोभ व्युच्छिल ( अनुदित - उदयावस्था में नहीं रहे हैं) होगये हैं, उसको ऐर्यापथिकी क्रिया लगती है, साम्परायिकी क्रिया नहीं लगती । जिस जीव के क्रोध, मान, माया और लोभ ये चारों व्युच्छिन्न (अनुदित ) नहीं हुए, उसको साम्परायिकी क्रिया लगती है, ऐर्याथिक क्रिया नहीं लगती। सूत्र ( आगम ) के अनुसार प्रवृत्ति करने वाले अनगार को ऐर्यापfest क्रिया लगती है और सूत्र से विपरीत प्रवृत्ति करने वाले अनगार को साम्परायिकी क्रिया लगती है। उपयोग रहित साधु, सूत्र से विपरीत, प्रवृत्ति करता है । इसलिए हे गौतम ! उसे साम्परायिकी क्रिया लगती है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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