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________________ भगवती सूत्र - श. ७ उ. १ ऐर्यापथिकी और सांपरायिकी क्रिया विवेचन-- पूर्व प्रकरण में अकर्मत्व का कथन किया गया है। अब इस प्रकरण में अकर्मत्व से विपरीत कर्मत्व का कथन किया जाता है । यहाँ दुःख के कारणभून मिथ्यात्वादिक कर्म को भी 'दुःख' शब्द से कहा गया है । इसलिए यहाँ ' दुःखी' शब्द का अर्थ है- 'सकर्मक जीव' । सकर्मक जीव ही कर्म से स्पृष्ट (बद्ध ) होता है, जो कर्म रहित है वह कर्म से स्पृष्ट नहीं होता । अतएव सिद्ध जीव कर्म से स्पृष्ट नहीं होते, क्योंकि वे कर्म- रहिन होते हैं। सकर्मक जीव ही कर्मों को निधत्तादि करता है, उदारता है. वेदता है और निर्जरता है ।. कर्मों का स्पर्श (बद्ध होना ), ग्रहण, उदीरणा, वेदना और निर्जरा, ये पांच बातें सकर्मक जीव में ही होती हैं, अकर्मक जीव में नहीं। यदि अकर्मक जीव में भी ये पांच बातें हों, तो सिद्ध भगवान् में भी इनका प्रसंग होगा, किन्तु ऐसा नहीं होता। इसलिए सिद्ध भगवान् में उपरोक्त पाँचों बातें नहीं होती । ऐर्यापथिकी और साम्परायिकी क्रिया १८ प्रश्न - अणगारस्स णं भंते! अणाउतं गच्छमाणस्स वा, चिट्टमाणस्स वा, णिसीयमाणस्स वा, तुयट्टमाणस्स वा, अणाउतं वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं गेण्हमाणस्स वा, णिक्खिवमाणस्स वा तस्स णं भंते! किं इरियावहिया किरिया कज्जइ, संपराइया किरिया कज्जइ ? १८ उत्तर - गोयमा ! णो इरियावहिया किरिया कज्जइ, संपराइया किरिया कज्जइ । प्रश्न-से केणट्रेणं ? उत्तर - गोयमा ! जस्सं णं कोह- माण-माया लोभा वोच्छिष्णा भवंति तस्स णं इरियावहिया किरिया कज्जइ, णो संपराइया किरिया 1 Jain Education International १०६३ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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