SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 322
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र-श. ८ उ. ५ श्रावक व्रत के भंग . १३८५ ९ प्रश्न-समणोवासगस्स णं भंते ! पुवामेव थूलए मुसावाए अपवाखाए भवइ, से णं भंते ! पच्छा पञ्चाइक्खमाणे० ? ९ उत्तर-एवं जहा पाणाइवायस्स सीयालं भंगसयं भणिय, तहा मुसावायस्स वि भाणियव्वं । एवं अदिण्णादाणस्स वि, एवं थूलगस्स मेहुणस्स वि, थूलगस्स परिग्गहस्स वि, जाव अहवा करेंतं णाणुजाणइ कायसा । एवं खलु एरिसगा समणोवासगा भवंति, णो खलु एरिसगा आजीविओवासगा भवंति।। कठिन शब्दार्थ-एगूणपण्णं--उनपचास, मुसावाए -मृषावाद ।। भावार्थ-७ प्रश्न-हे भगवन् ! प्रत्युत्पन्न (वर्तमान काल) का संवर करता हुआ श्रावक क्या विविध त्रिविध संवर करता है ? इत्यादि प्रश्न ।। ७ उत्तर-हे गौतम ! पहले कहे अनुसार उनपचास भंग कहने चाहिये अर्थात् प्रतिक्रमण के विषय में जो उनपवास भंग कहे हैं, वे ही संवर के विषय में जानना चाहिये। ८ प्रश्न-हे भगवन् ! अनागत (भविष्यत्) काल के प्राणातिपात का प्रत्याख्यान करता हआ श्रावक क्या विविध विविध प्रत्याख्यान करता है? इत्यादि प्रश्न ? . . . . . . ८ उत्तर-हे गौतम ! पहले कहे अनुसार यहां भी उनपचास भंग कहना चाहिये यावत् 'अथवा करते हुए का अनुमोदन करता नहीं-काया से'-यहां तक कहना चाहिये। ९ प्रश्न-हे भगवन् ! जिस श्रमणोपासक ने पहले स्थूल मृषावाद का प्रत्याख्यान नहीं किया, किंतु बाद में वह स्थूल मृषावाद का प्रत्याख्यान करता है, तो क्या करता है ? ९ उत्तर-हे गौतम ! जिस प्रकार प्राणातिपात के विषय में एक सौ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy