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________________ भगवती सूत्र-स. ८ उ. ५ श्रावक व्रत के भंग जब एकविध विविध प्रतिक्रमण करता है, तब ३२ स्वयं करता नहींमन और वचन से । ३,३ अथवा स्वयं करता नहीं, मन और कायाले । ३४ अथवा स्वयं करता नहीं-बान और काया से । ३५ अथवा टूसा से करवाता नहीं मन और वचन से । ३६ अथवा दूसरों से करवाता नहीं-मन और काया से । ३४ अथवा दूसरों से करवाता नहीं वचन और काया से । अथवा करते हुए का अनुमोक्त कस्ता नहीं मन और वचन से । ३९ अथवा करते हुए का अनुमोदन करता नहीं सन और काया से । X अथवा करते हए का अनुमोदन करता नहीं वचत और काया से f r istings - जब एकविध एकविध अतिक्रमण करता है, तब स्वयं करना नहीं:मन से । ४२ अथवा स्वयं करता नहीं-वचन से ४३ अथवा स्वयं करता नहीं:काया से । ४४ अथवा दूसरों से करवाता नहीं--मन से । ४५ अथवा दूसरों से करवात न स ।४६ अथवा दसरों में करवाता ai. ४७ अथवा करते हए का अनमोदन करता नहीं-मन से। ४८ अथवा अन करता नहीं--वचन से । ४९ अथवा अनुमोदन करता नहीं-काया से। AR छप-पडुपणं संचरेमाणे किं तिविहं तिविहेण संवरेइ ? 73 EFLEISOS EN LEBEE 16 र-एव जहा पाडक्कममाणणगणपण्ण भगा भाणया एवं संवरमाणेप वि एणमां भंगा भाणियत्वा । TREES प्रभ अणांगणं पञ्चक्खमाणे "किं तिविहं तिविहेणे पञ्चक्खाइ ? + wer र-एवं तं चन - - - भगा एगृणपण्ण भाण करेंत माणुजाणइ वनयमा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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