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________________ १३८६ भगवती सूत्र-श. ८ उ. ५ आजीविकोपासक और श्रमणोपासक. संतालीस (अतीत काल के पाप से निवृत्त, वर्तमान में संवर करने और आगामी काल के प्रत्याख्यान करने रूप तीन काल सम्बन्धी ४९४३ = १४७) भंग कहे गये हैं। उसी प्रकार मृषावाद के विषय में भी एक सौ संतालीस भंग कहना चाहिये। इसी प्रकार स्थूल अदत्तादान, स्थूल मैथुन और स्थूल परिग्रह के विषय में भी एक सौ सेंतालीस, एक सौ सेंतालीस भंग जानना चाहिये । यावत् 'अथवा पाप करते हुए का अनुमोदन करता नहीं, काया से' वहाँ तक जानना चाहिये। इस प्रकार के श्रमणोपासक होते हैं, किन्तु आजीविकोपासक (गोशालक के उपासक) इस प्रकार के नहीं होते। विवेचन-श्रावक ४९ भंगों में से किसी भी भंग से प्रतिक्रमण आदि कर सकता है। उनका विवरण इस प्रकार है-करना, कराना, अनुमोदना-ये तीन 'करण' हैं । मन, वचन और काया-ये तीन 'योग' हैं । इनके संयोग से विकल्प नौ और भंग उनपचास होते हैं । नौ विकल्प ये हैं-१ तीन करण, तीन योग । २ ते न करण, दो योग । ३ तीन करण, एक योग। ४ दो करण, तीन योग । ५ दो करण, दो योग ६ दो करण, एक योग । ७ एक करण, तीच योग । ८ एक करण, दो योग । ९ एक करण, एक योग । इन नौ विकल्पों के ४९ भंग होते हैं। इनमें से किसी भी भंग से श्रावक भूतकाल का प्रतिक्रमण करता हैं, वर्तमान काल में संवर करता है और भविष्य के लिये प्रत्याख्यान (पाप नहीं करने की प्रतिज्ञा) करता है । इस प्रकार तीनों काल की अपेक्षा उन पचास भंगों को तीन से गुणा करने से एक सौ सेंतालीस भंग होते हैं। ये प्राणातिपात विषयक हैं । स्थूल मृषावाद, स्थूल अदत्तादान, स्थूल मथुन और स्थूल परिग्रह-इन प्रत्येक के भी एक सो संतालीस-एकसौ सेंतालीम भंग होते हैं । पाँचों अणुव्रतों के मिलाकर कुल ७३५ भंग होते है हैं । आजीविकोपासक और श्रमणोपासक १०-आजीवियसमयस्म णं अयमढे-अक्खीणपडिभोइणो मब्वे सत्ता से हंता, छेत्ता, भेत्ता, लुपित्ता, विलंपित्ता, उद्दवइत्ता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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