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भगवती सूत्र-श. ८ उ. ५ श्रावक व्रत के मंग
की प्रतिज्ञा करता है।
प्रश्न-हे भगवन् ! अतीतकाल के प्राणातिपातादि का प्रतिक्रमण करता हुमा श्रमणोपासक-१ क्या त्रिविध त्रिविध (तीन करण, तीन योग से) या : विविध विविध, ३ विविध एकविध, ४ द्विविध त्रिविध, ५ द्विविध विविध या ६ द्विविध एकविध, ७ एकविध विविध, ८ एकविध द्विविध अथवा ९ एकविध एकविध प्रतिक्रमण करता है ?
६ उतर-हे गौतम ! त्रिविध विविध प्रतिक्रमण करता है, या त्रिविध विविध प्रतिक्रमण करता है, अथवा धावत् एकविध एकविध भी प्रतिक्रमण करता है। १ जब त्रिविध त्रिविध प्रतिक्रमण करता है, तब स्वयं करता नहीं, दूसरे से करवाता नहीं और करनेवाले का अनुमोदन भी नहीं करता-मन से, वचन से और काया से । २ जब त्रिविध विविध प्रतिक्रमण करता है, तब स्वयं करता नहीं, दूसरे से करवाता नहीं, करने वाले का अनुमोदन करता नहीं-मन और वचन से । ३ अथवा स्वयं करता नहीं, दूसरे से करवाता नहीं और करने वाले का अनुमोदन करता नहीं, मन और काया से । ४ अथवा स्वयं करता नहीं, दूसरे से करवाता नहीं और करनेवाले का अनुमोदन भी नहीं करता-वचन और काया से।
जब त्रिविध एकविध (तीन करण एक योग से) प्रतिक्रमण करता है, तब ५ स्वयं करता नहीं, दूसरों से करवाता नहीं, करते हुए का अनुमोदन करता नहीं-मन से । ६ अथवा स्वयं करता नहीं, दूसरों से करवाता नहीं, करते हुए का अनुमोदन करता नहीं-वचन से । ७ अथवा स्वयं करता नहीं, दूसरों से कर. वाता नहीं, करते हुए का अनुमोदन करता नहीं-काया से। ___ जब द्विविध त्रिविध (दो करण तीन योग से) प्रतिक्रमण करता है, तब ८ स्वयं करता नहीं, दूसरों से करवाता नहीं-मन, वचन और काया से । ९ अथवा स्वयं करता नहीं, करते हुए का अनुमोदन करता नहीं-मन, वचन और काया से । १० अपवा दूसरों से करवाता नहीं, करते हुए का अनुमोदन करता नहीं-मन, वचन और काया से ।
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