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भगवती सूत्र-श.८ उ.५ श्रावक के माड
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अजायं चरह ? .३ उत्तर-गोयमा ! जायं चरह, णो अजायं चरइ ।
४ प्रश्न-तस्स णं भंते ! तेहिं सीलब्धय गुण-वेरमण-पच्चरखाणपोसहोववासेहिं सा जाया अजाया भवइ ?
४ उत्तर-गोयमा ! हंता भवइ ।
प्रश्न-से केणं खाइणं अटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-जायं चरइ णो अजायं चरइ ?
उत्तर-गोयमा ! तस्स णं एवं भवइ-णो मे माया, णो मे पिया, णो मे भाया, णो मे भगिणी, णो मे भज्जा, णो मे पुत्ता, णो मे धूया णो मे सुण्हा: पेज्ज बंधणे पुण से अवोच्छिण्णे भवइ, से तेणटेणं गोयमा ! जाव णो अजायं चरइ ।
कठिन शब्दार्थ-जायं चरेज्जा-स्त्री का सेवन करे, अजायं-अपत्नी को, अबोच्छिण्णे-टूटा नहीं।
भावार्थ-३ प्रश्न-हे भगवन् ! कोई एक श्रावक सामायिक करके श्रमणो. पाश्रय में बैठा है । उस समय यदि कोई व्यभिचारी लम्पट पुरुष, उस श्रावक की जाया (स्त्री) को भोगता है, तो क्या वह जाया (श्रावक को स्त्री) को भोगता है, या अजाया (श्रावक की स्त्री नहीं दूसरों की स्त्री) को भोगता है?
३ उत्तर-हे गौतम ! वह पुरुष उस श्रावक की जाया को भोगता है, अनाया को नहीं भोगता।
४ प्रश्न-हे भगवन् ! शीलवत, गुणवत, विरमण, प्रत्याख्यान और पौषधोपवास कर लेने से उस श्रावक की जाया क्या 'अजाया' हो जाती है ?
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