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भगवती सूत्र-क्ष..८.४.५ श्रावक के भाण्ड
पूछा । हे भगवन् ! आजीविक अर्थात् गोशालक के शिष्यों ने स्थविर भगवन्तों से इस प्रकार पूछा कि कोई श्रावक, सामायिक करके उपाश्रय में बैठा है। उस श्रावक के वस्त्र आदि कोई चुरा ले जाय और (सामायिक पूर्ण होने पर उसे पार कर) वह उन वस्तुओं का अन्वेषण करे, तो क्या वह श्रावक अपनी वस्तु का अन्वेषण करता है, या दूसरों की वस्तु का अन्वेषण करता है ?
....१ उत्तर-हे गौतम ! वह श्रावक अपनी वस्तु का अन्वेषण करता है, दूसरों की वस्तु का अन्वेषण नहीं करता।
२ प्रश्न-हे भगवन् ! शीलवत, गुणवत, विरमण, प्रत्याख्यान और पौषधोपवास अंगीकार किये हुए श्रावक के वे अपहृत (चुराये हुए) भाण्ड क्या उसके लिए अभाण्ड हो जाते हैं ?
२ उत्तर-हां, गौतम ! वे उसके लिये अभाण्ड हो जाते हैं।
प्रश्न-हे भगवन ! यदि उसके लिये वे अभाण्ड हो जाते हैं, तो आप ऐसा क्यों कहते हैं कि वह श्रावक अपने भाण्ड का अन्वेषण करता है, दूसरे के भाण्ड का अन्वेषण नहीं करता? .
उत्तर-हे गौतम,! सामायिक करने वाले उस श्रावक के मन में ऐसे परिणाम होते हैं कि 'हिरण्य (चांदी) मेरा नहीं है, स्वर्ण मेरा नहीं है, कांस्य (कांसी के बर्तन) मेरे नहीं हैं, वस्त्र मेरे नहीं हैं, विपुल धन, कनक, रत्न, मणि, मोती, शंख, शिलाप्रवाल (विद्रुम मणि) तथा रक्तरत्न अर्थात पद्मरागादि मणि इत्यादि विद्यमान सारभूत द्रव्य मेरे नहीं हैं।' परन्तु उसने ममत्वभाव का प्रत्याख्यान नहीं किया है, इस कारण हे गौतम ! ऐसा कहता हूँ कि वह श्रावक अपने माण्ड का अन्वेषण करता है, दूसरों के भाण्ड का अन्वेषण नहीं करता।
३ प्रश्न-समणोवासगस्स णं भंते ! सामाइयकडस्स समणो. वस्सए अच्छमाणस्म केह जायं चरेजा, से णं भंते ! किं जायं चरइ,
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