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भगवती सूत्र-श. ८ उ. ५ श्रावक के भाण्ड
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तं भंडं अणुगवेसमाणे किं सयं भंडं अणुगवेसइ, परायगं भंड अणुगवेसइ ?
१ उत्तर-गोयमा ! मयं भंड अणुगवेसइ, णो परायगं भंड अणुगवेसइ ।
२ प्रश्न-तस्स णं भंते ! तेहिं सीलब्वय-गुण-वेरमण-पचवखाणपोसहोववासेहिं से भंडे अभंडे भवइ ? .
२ उत्तर-हंता भवइ ।
प्रश्न-से केणं खाइ णं अटेणं भंते ! एवं वुबई-सयं भंडं अणुगवेसइ णो परायगं भंडं अणुगवेसइ ? । . उत्तर-गोयमा ! तस्स णं एवं भवइ-णो मे हिरण्णे, णो मे
सुवण्णे, णो मे कंसे, णो मे दूसे, णो मे विपुलधण-कणगरयण-मणिमोत्तिय संख-सिल-प्पवाल रत्तरयणमाईए संतसारसावएजे, ममत्तभावे पुण से अपरिग्णाए भवइ, से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुचइ सयं भंड अणुगवेसइ, णो परायगं भंडं अणुगवेसइ ।
कठिन शनार्थ - आजीविया--आजीविक अर्थात् गोशालक के मतानुयायी, समणो. बासग :-श्रमण की उपासना करने वाला (जैन), सामाइयकउस्स-सामायिक किया हुआ, अच्छमाणस्स- रहा हुआ, भंड-वस्तु, अवहरेज्जा-अपहरण करे, अणुगवेसमाणे-खोज करते हुए, परायगं--दूसरे के, संतसारसाबएज्जे-विद्यमान प्रधान (सारभूत द्रव्य) अपरिग्णाए-त्याग नहीं किया।
भावार्थ-१ प्रश्न-राजगृह नगर में यावत् गौतमस्वामी ने इस प्रकार
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