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________________ भगवती सूत्र-श. ८ उ. ५ श्रावक के भाण्ड १३७५ तं भंडं अणुगवेसमाणे किं सयं भंडं अणुगवेसइ, परायगं भंड अणुगवेसइ ? १ उत्तर-गोयमा ! मयं भंड अणुगवेसइ, णो परायगं भंड अणुगवेसइ । २ प्रश्न-तस्स णं भंते ! तेहिं सीलब्वय-गुण-वेरमण-पचवखाणपोसहोववासेहिं से भंडे अभंडे भवइ ? . २ उत्तर-हंता भवइ । प्रश्न-से केणं खाइ णं अटेणं भंते ! एवं वुबई-सयं भंडं अणुगवेसइ णो परायगं भंडं अणुगवेसइ ? । . उत्तर-गोयमा ! तस्स णं एवं भवइ-णो मे हिरण्णे, णो मे सुवण्णे, णो मे कंसे, णो मे दूसे, णो मे विपुलधण-कणगरयण-मणिमोत्तिय संख-सिल-प्पवाल रत्तरयणमाईए संतसारसावएजे, ममत्तभावे पुण से अपरिग्णाए भवइ, से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुचइ सयं भंड अणुगवेसइ, णो परायगं भंडं अणुगवेसइ । कठिन शनार्थ - आजीविया--आजीविक अर्थात् गोशालक के मतानुयायी, समणो. बासग :-श्रमण की उपासना करने वाला (जैन), सामाइयकउस्स-सामायिक किया हुआ, अच्छमाणस्स- रहा हुआ, भंड-वस्तु, अवहरेज्जा-अपहरण करे, अणुगवेसमाणे-खोज करते हुए, परायगं--दूसरे के, संतसारसाबएज्जे-विद्यमान प्रधान (सारभूत द्रव्य) अपरिग्णाए-त्याग नहीं किया। भावार्थ-१ प्रश्न-राजगृह नगर में यावत् गौतमस्वामी ने इस प्रकार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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