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________________ १३७८ भगवती सूत्र - श. ८ उ. ५ श्रावक व्रत के भंग ४ उत्तर - हाँ, गौतम ! अजाया हो जाती है । प्रश्न - हे भगवन् ! जब वह उस श्रावक के लिये अजाया हो जाती है, तो आप ऐसा क्यों कहते हैं कि वह लम्पट उसकी जाया को भोगता है, अजाया को नहीं भोगता ? उत्तर - हे गौतम ! शीलव्रतादि को अंगीकार करने वाले उस श्रावक के मन में ऐसे परिणाम होते हैं कि 'माता मेरी नहीं है, पिता मेरे नहीं है, भाई मेरे नहीं हैं, बहन मेरी नहीं है, स्त्री मेरी नहीं है, पुत्र मेरे नहीं है, पुत्री मेरी नहीं हैं और स्नुषा ( पुत्रवधु) मेरी नहीं है।' ऐसा होते हुए भी उनके साथ उसका प्रेम बन्धन टूटा नहीं, इस कारण हे गौतम ! ऐसा कहता हूँ कि वह पुरुष उस श्रावक की जाया को भोगता है, अजाया को नहीं भोगता । विवेचन - सामायिक, पोषघोपवास आदि किये हुए श्रावक ने यद्यपि भाण्ड ( बस्त्रादि) का त्याग कर दिया है, तथा सोना, चांदी तथा माता, पिता, पुत्र, स्त्री आदि के प्रति भी उसके मन में यही परिणाम होता है कि ये सब मेरे नहीं हैं, किंतु अभी उसने उनके प्रति ममत्व का त्याग नहीं किया, अपितु उनके प्रति उसका प्रेम बन्धन रहा हुआ है । इसलिये वे वस्त्रादि तथा स्त्री आदि उसी के कहलाते हैं । श्रावक व्रत के भंग ५ प्रश्न - समणोवासगस्स णं भंते! पुव्वामेव थूलए पाणाइवाए अपञ्चखाए भवह, से णं भंते! पच्छा पञ्चाहम्खमाणे किं करे ? ५ उत्तर - गोयमा ! तीयं पडिक्कमह, पडुप्पण्णं संवरेह, अणा गयं पञ्चखाइ ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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