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शतक ८ उद्देशक ४
पांच क्रिया
१ प्रश्न-रायगिहे जाव एवं वयासी-कड़ णं भंते ! किरियाओ पण्णत्ताओ?
१ उत्तर-गोयमा ! पंच किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहाकाइया, अहिगरणिया; एवं किरियापदं णिरवसेसं भाणियव्वं, जाव मायावत्तियाओ किरियाओ विसेमाहियाओ।
* मेवं भंते ! सेवं भंते ! ति*
॥ अट्ठमसए चउत्था उद्देसो समत्तो ॥ कठिन शब्दार्य-किरियाओ-क्रिया (मन, वचन और काया की वह प्रवृत्ति कि जिससे कर्मों का बंध हो) काइया--गरीर मम्बंधी, अहिंगरणिया--अधिकरण (शस्त्र से होने वाली) निरवसेसं--परिपूर्ण. मायावत्तिया--कषाय प्रत्ययक।
. भावार्थ-५ प्रश्न-राजगह नगर में यावत् गौतम स्वामी ने इस प्रकार पूछा कि-हे भगवन ! क्रियाएं कितनी कही गई हैं ?
१ उत्तर-हे गौतम ! क्रियाएं पांच कही गई हैं । यथा- कायिकी, अधि. करणिकी, प्रादेषिकी, पारितापनिकी और प्राणातिपातिकी। यहां प्रज्ञापना सूत्र का बाईसवां सम्पूर्ण क्रियापद कहना चाहिए यावत् 'मायाप्रत्यायिक क्रियाएँ विशेषाधिक हैं'--यहां तक कहना चाहिए।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। ऐसा कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं।
विवेचन-कर्मबन्ध की कारणभूत चेष्टा को अथवा दुष्ट व्यापार विशेष को 'क्रिया कहते हैं । अथवा-कर्म बन्ध के कारणरूप कायिकी आदि पाँच-पाँच करके पच्चोस क्रियाएँ
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