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१३७.
भगवती सूत्र-श. ८ उ. ३ जीव प्रदेशों पर शस्त्रादि का स्पर्श
विवाहं वा उप्पाएइ, छविच्छेयं वा करेइ ? ___७ उत्तर-णो इणटे समढे, णो खलु तत्थ सत्थं कमइ । .
कठिन शम्दार्थ-कुम्मे-कूर्म-कछुआ, गोणा-गाय, महिसे-महिष (भंसा) छिण्णाणखंडित (टुकड़े किये हुए) अंतरा-धीच का, फूडा-स्पणित-स्पर्श किया हुआ, सलागाए-सलाई से, कठेग-काष्ट से, किलिचेण-छोटी लकड़ी से, आमसमाणे-स्पर्शता हुआ संमुसमाणेविशेष स्पर्श करती हुमा, आलिहमाणे विलिहमाणे-अल्प या विशेष आकर्षित करता हुभा, अन्नपरेग-कोई अन्य, तिकोण-तीक्ष्ण, सत्यजाएणं-शस्त्र समूह से, आछिवमाणे-काटता हुआ, समोरहमाणे-जलाता हुआ, किवि-कुछ भो, आवाहं विवाह-पोड़ा करता है, विशेष पोड़ा करता है, विच्छेयं-अवयवछेदन ।
भावार्थ-६ प्रश्न-हे भगवन् ! कछुआ, कछुए को श्रेणि, गोधा (गोह) गोधा की पंक्ति, गाय,गाय की पंक्ति,मनुष्य, मनुष्य की पंक्ति, भैंसा, भैंसों की पंक्ति, इन सबके दो, तीन या संख्यात खण्ड किये जाय, तो उनके बीच का भाग या जीव प्रदेशों से स्पष्ट है ?
६ उत्तर-हाँ, गौतम ! स्पष्ट है।
७ प्रश्न-हे भगवन् ! कोई पुरुष, उन कछुए आदि के खण्डों के बीच के भाग को हाथ से, अंगुलि से, शलाका से, काष्ठ से और लकडी के छोटे ट्रकडे से स्पर्श करे, विशेष स्पर्श करे, थोड़ा या विशेष खींचे अथवा किसी तीक्ष्ण शस्त्र समूह से छेदे, विशेष रूप से छेदे, अग्नि से जलावे, तो क्या उन जीव प्रदेशों को थोडी, या अधिक पीडा होती है, या उनके किसी अवयव का छेद होता है ?
७ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं। क्योंकि जीव प्रदेशों पर शस्त्र आदि का प्रभाव नहीं होता।
विवेचन-किसी जीव के शरीर का खण्ड हो जाने पर भी तत्काल उसका कोई भी अवयव, जीव प्रदेशों से स्पृष्ट रहता है । उन जीव प्रदेशों पर कोई पुरुष शस्त्रादि से प्रहार करे या हस्तादि से स्पर्शादि करे तो उन जीव प्रदेशों पर उसका प्रभाव नहीं होता।
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