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भगवती सूत्र-श. ८ उ. २ ज्ञान-अज्ञान के पर्याय
तथा मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान और विभंगज्ञान के पर्यायों में किसके पर्याय किसके पर्यायों से यावत् विशेषाधिक हैं ?
११७ उत्तर-हे गौतम ! सबसे थोडे मनःपर्ययज्ञान के पर्याय है। उनसे विभंगज्ञान के पर्याय अनन्त गुण हैं। उनसे अवधिज्ञान के पर्याय अनन्त गण हैं। उनसे श्रुतअज्ञान के पर्याय अनन्त गुण हैं। उनसे श्रुतज्ञान के पर्याय विशेषाधिक हैं। उनसे मतिअज्ञान के पर्याय अनन्त गुण हैं। उनसे मतिज्ञान के पर्याय विशेषाधिक हैं । उनसे केवलज्ञान के पर्याय अनन्त गुण हैं। ...
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैं। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । ऐसा कहकर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं।
विवेचन-काल द्वार-यहाँ ज्ञानी के दो भेद कहे गये हैं। यथा-'सादि अपर्यवसितजिसको आदि तो है, किन्तु अन्त नहीं, ऐसा ज्ञानो तो केवलज्ञानी होता है । दूसरा भेद है- सारि सपर्यवसित'-जिसके ज्ञान की आदि भी है और अन्त भी है । ऐसा ज्ञानी, मति आदि ज्ञान वाला होता है । इनमें से केवलज्ञान का काल सादि अपर्यवसित है, शेष मति आदि चार ज्ञानों का काल सादि सपर्यवसित है । इनमें से मतिज्ञान और श्रुतज्ञान का जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है । अवधिज्ञान और मनःपर्यय ज्ञान का जघन्य काल एक समय है । आदि के तीन ज्ञानों का उत्कृष्ट काल साधिक छासठ सागरोपम है। मनःपर्यय ज्ञान का उत्कृष्ट काल देशोन करोड़ पूर्व का है। केवलज्ञान का तो सादि अपर्यवसित है । भर्थात् केवलज्ञान उत्पन्न होकर फिर कभी नष्ट नहीं होता।
ज्ञानी-आभिनिबोधिक ज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मनःपर्ययज्ञानी और केवलज्ञानी; अज्ञानी-मति अज्ञानी, श्रुत अज्ञानी और विभंगज्ञानी- इन का स्थिति काल प्रज्ञापना सूत्र के अठारहवें कायस्थितिपद में कहे अनुसार जानना चाहिये । यद्यपि ज्ञानी का स्थिति काल पूर्वोक्त (सू. ११०) सूत्र में कहा गया है, तथापि यहां प्रकरण से सम्बन्धित होने के कारण फिर कहा गया है । आमिनिबोधिक ज्ञान और श्रुतज्ञान का काल जघन्य अन्तर्मुहूतं, उत्कृष्ट साधिक छासठ सागरोपम है। अवधिज्ञान का उत्कृप्ट काल भी इतना ही है, किन्तु जघन्य काल एक समय का है । जब किसी विभंगज्ञानी को सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होती है. तब सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के प्रथम समय में ही विमंगज्ञान, अवधिज्ञान के रूप में परिणत हो जाता है । इसके बाद तुरन्त ही दूसरे समय में वह अवधिज्ञान से गिरजाता है, तब केवल
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