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भगवती सूत्र - श८ उ. २ ज्ञान अज्ञान के पर्याय
एक समय ही अवधिज्ञान रहता है । मन:पर्ययज्ञानी का अवस्थिति काल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट कुछ कम कोटि-पूर्व होता है । अप्रमत्त गुणस्थान में रहे हुए किसी संयत (मुनि) को मन:पर्यय ज्ञान उत्पन्न होता है और तुरन्त ही दूसरे समय में नष्ट हो जाता है । उत्कृष्ट
न्यून पूर्व-कोटि वर्ष का अवस्थिति काल है । किसी पूर्व-कोटि वर्ष की आयुष्य ' वाले मनुष्य ने चारित्र अंगीकार किया । चारित्र अंगीकार करने के पश्चात् उसे शीघ्र ही मन:पर्ययज्ञान उत्पन्न हो जाय और यावज्जीवन रहे. उसका स्थिति काल उत्कृष्ट किञ्चिन्न्यून कोटि वर्ष होता है । केवलज्ञान का स्थिति काल सादि अनन्त है । अर्थात् केवलज्ञान की उत्पत्ति की आदि तो है, किन्तु वह उत्पन्न होने के बाद वापिस कभी नहीं जाता । इसलिये उसका कभी अन्त नहीं होता ।
अज्ञान - मतिअज्ञान और श्रुतअज्ञान का स्थिति-काल तीन प्रकार का है । यथा१ अनादिअनन्त ( अभव्य जीवों की अपेक्षा ) २ अनादि- सान्त ( भव्य जीवों की अपेक्षा ) ३ सादि- सान्त (सम्यग्दर्शन से गिरे हुए जीवों की अपेक्षा ) । इनमें से सादि- सान्त का काल जघन्य अन्तर्मुहुर्त है, क्योंकि कोई जीव, सम्यग्दर्शन से गिरकर अन्तर्मुहूर्त के बाद ही पुनः सम्यग्दर्शन प्राप्त कर लेता है । उत्कृष्ट अनन्तकाल है, क्योंकि कोई जीव, सम्यक्त्व से गिरकर फिर अनन्त काल बाद पुनः सम्यक्त्व को प्राप्त करता है । विभंगज्ञान का स्थिति काल जघन्य एक समय है, क्योंकि उत्पन्न होने के बाद दूसरे समय में ही वह विनष्ट जाता है। उत्कृष्ट किचिन्न्यून पूर्व-कोटि अधिक तेतीस मागरोपम है, क्योंकि कोई मनुष्य किंचिन्न्यून पूर्व-कोटि वर्ष विभंगज्ञानी पने रहकर सातवीं नरक में उत्पन्न हो जाता है ।
अन्तर द्वार - यहाँ पाँच ज्ञान और तीन अज्ञान के अन्तर के लिये जीवाभिगम सूत्र की भलामण ( अतिदेश) दी गई है। वहाँ इस प्रकार बतलाया गया है-आभिनिंबोधिक ज्ञान का पारस्परिक अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट कुछ कम अर्द्ध पुद्गल - परावर्तन है । इस प्रकार श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और मन:पर्यय ज्ञान के विषय में भी जानना चाहिये । केवलज्ञान का अन्तर नहीं होता । मतिअज्ञान और श्रुतअज्ञान का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट कुछ अधिक छासठ सागरोपम है । विभंगज्ञान का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्त काल ( वनस्पति काल जितना ) है |
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अल्पबहुत्व द्वार-पाँच ज्ञान का अल्पबहुत्व इस प्रकार है - सबसे थोड़े मन:पर्ययज्ञानी । उनसे अवधिज्ञानी असंख्यात गुण हैं। उनसे आभिनिबोधिक ज्ञानी और श्रुतज्ञानी दोनों विशेषाधिक हैं और परस्पर तुल्य हैं। उनसे केवलज्ञानी अनन्त गुण हैं ।
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