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________________ १३५८ भगवती सूत्र - श. ८ उ. २ ज्ञानादि का काल हो ? ११० उत्तर - गोयमा ! णाणी दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - साइए वा अपज्जवसिए, साइए वा सपज्जवसिए । तत्थ णं जे से साइए सपज्जवसिए से जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उनकोसेणं छावहिं सागरोव - माझं सातिरेगाई । १११ प्रश्न - आभिणिबोहियणाणी णं भंते ! ० ? १११ उत्तर - आभिणिबोहिय० एवं णाणी, आभिणिबोहिय. णाणी, जाव केवलणाणी । अण्णाणी, मइअण्णाणी, सुयअण्णाणी, विभंगणाणी - एएसिं दसह वि संचिटुणा जहा कार्यट्टिईए । अंतरं सब्वं जहा जीवाभिगमे अप्पाबहुगाणि तिष्णि जहा बहुवत्तव्वयाए । कठिन शब्दार्थ - केवच्चिरं-कहां तक साइए - आदि सहित, अपज्जवसिए - पर्यवसान (अंत) रहित, सपज्जबसिए - अंतसहित, संचिणां अवस्थिति काल । भावार्थ - ११० प्रश्न - हे भगवन् ! ज्ञानी, ज्ञानीपने कितने काल तक रहता है ? ११० उत्तर - हे गौतम! ज्ञानी दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा-सादिअपर्यवसित और सादि सपर्यवसित । सादि- सपर्यवसित ज्ञानी जघन्य अन्तर्मुहूर्त • और उत्कृष्ट कुछ अधिक छासठ सागरोपम तक ज्ञानीपने रहते हैं । १११ प्रश्न - हे भगवन् ! आभिनिबोधिक ज्ञानी, आभिनिबोधिक ज्ञानीकितने काल तक रहता है ? १११ उत्तर - हे गौतम! ज्ञानी, अभिनिवोधिकज्ञानी यात्रत्. केवली Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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