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भगवती सूत्र-श. ८ उ. २ ज्ञानादि का काल
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जिस घट का चिन्तन किया. वह द्रव्य से मिट्टी का बना हुआ है, क्षेत्र से पाटलीपुत्र (पटना) में है । काल से वसन्त-ऋतु का है और भाव से पीले रंग का है । इत्यादि विशेषताओं को जानता है।
- ऋजुमति मनःपर्ययज्ञानी क्षेत्र से जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट निर्यग्मनुष्यलोक (ढाई द्वाप और दो समुद्र) में रहे हुए संज्ञी पञ्चेन्द्रिय पर्याप्त जीवों के मनोगत भावों की जानता देखता है । विपुलमति उससे ढ़ाई अंगुल अधिक क्षेत्र में रहे हुए जीवों के मनोगत भावों को विशेष प्रकार से, विशुद्ध रूप से जानता देखता है । तात्पर्य यह है कि ऋजुमति मनःपर्यय ज्ञानी, क्षेत्र से जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग को और उत्कृष्ट अधोदिशा में रत्नप्रभा पृथ्वी के उपरितन तल के नीचे के क्षुल्लक प्रतरों को जानता-देखता है । ऊर्ध्व दिशा में ज्योतिषी के उपरितल को जानता देखता है । तिर्यक दिशा में ढ़ाई अंगुल कम ढाई द्वीप और दो समुद्र के संज्ञी पञ्चेन्द्रिय पर्याप्त जीवों के मनोगतभावों को जानता देखता है । विपुलमति, क्षेत्र की अपेक्षा सम्पूर्ण ढाई द्वीप और दो समुद्र को जानता-देखता है । काल से ऋजुपति जवन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग को और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग जितने अतीत अनागत काल को जानता-देखता है। विपुलमति मनःपर्ययज्ञानी भी इसी को स्पष्ट रूप से जानता देखता है। भाव से ऋजुमति सभी भावों के अनन्तवें भाग में रहे हुए अनन्त भावों को जानता-देखता है । विपुलमति इन्हें विशुद्ध और स्पष्ट रूप से जानता-देखता है।
केवलज्ञान के दो भेद हैं । भवस्थ केवलज्ञान और सिद्ध केवलज्ञान । केवलज्ञानी सर्व द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव को जानता-देखता है।
___ मंति अज्ञानी, मतिअज्ञान द्वारा गृहीत द्रव्यों को-द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव से जानतादेखता है । श्रुत अज्ञानी, श्रुतअज्ञान द्वारा गृहीत द्रव्यों को द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव से कहता है। उनके भेद-प्रभेद करके बतलाता है । और हेतु, युक्ति द्वारा प्ररूपणा करता है विभंगज्ञानी विभंगज्ञान द्वारा गृहीत द्रव्यों को द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव से जानता देखता है।
ज्ञानादि का काल
११० प्रश्न-णाणी णं भंते ! 'णाणी' त्ति कालओ केवच्चिरं
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