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________________ १३५४ भगवती सूत्र - ८ उ. २ ज्ञान की व्यापकता ( विषय द्वार ) अण्णाण परियाई दव्वाइं जाणड़ पासइ, एवं जाव भावओ णं मड़अण्णाणी मइअण्णाणपरिगए भावे जाणइ पासइ | १०८ प्रश्न - सुखअण्णाणस्स णं भंते ! केवइए विसर पण्णत्ते ? १०८ उत्तर - गोयमा ! से समासओ चउविहे पण्णत्ते, तं जहादव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ । दव्वओ णं सुयअष्णाणी सुयअण्णाणपरिगयाई दव्वाई आघवेइ, पण्णवेइ, परूवेइ । एवं खेत्तओ, कालओ, भावओ णं सुयअण्णाणी सुयअण्णाणपरिगए भावे आघवेह तं चैव । १०९ प्रश्न - विभंगणाणस्स णं भंते ! केवइए विसर पण्णत्ते ? १०९ उत्तर - गोयमा ! से समासओ चउव्विहे. पण्णत्ते, तं जहादव्वओ, खेतओ, कालओ, भावओ । दव्वओ णं विभंगणाणी विभंगणाणपरिगयाई ब्वाई जाणइ पास एवं जाव भावओ णं विभंगणाणी विभंगणाणपरिगए भावे जाणइ पासइ | कठिन शब्दार्थ - आघवेइ-कहता है, पण्णवेइ - बतलाता है, परूवेइ - प्ररूपित करता है । भावार्थ - १०७ प्रश्न - हे भगवन् ! मतिअज्ञान का विषय कितना कहा गया है ? १०७ उत्तर - हे गौतम! वह संक्षेप से चार प्रकार का कहा गया है । यथा - द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से । द्रव्य से मतिअज्ञानी, मतिअज्ञान के विषयभूत द्रव्यों को जानता और देखता है। इस प्रकार यावत् भाव से मतिअज्ञानी मतिअज्ञान के विषयभूत भावों को जानता और देखता है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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