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भगवती सूत्र-श. ८ उ. २ ज्ञान की व्यापकना (विषय द्वार)
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द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से । द्रव्य से उपयुक्त (उपयोग सहित) श्रुतज्ञानी, सभी द्रव्यों को जानता और देखता है । इस प्रकार क्षेत्र से, काल से भी जानना चाहिये । भाव से उपयुक्त श्रुतज्ञानी सभी भावों को जानता और देखता है।
१०४ प्रश्न-हे भगवन् ! अवधिज्ञान का विषय कितना कहा है ?
१०४ उत्तर-हे गौतम ! संक्षेप से चार प्रकार का कहा गया है। यथाद्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से । द्रव्य से अवधिज्ञानी रूपी द्रव्यों को जानता ओर देखता है । इत्यादि जिस प्रकार नन्दी सूत्र में कहा है, उसी प्रकार यावत् भाव पर्यन्त कहना चाहिये।
१०५ प्रश्न-हे भगवन् ! मनःपर्यय ज्ञान का विषय कितना कहा गया है ?
१०५ उत्तर-हे गौतम ! वह संक्षेप से चार प्रकार का कहा गया है। यथा-द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से । द्रव्य से ऋजुमति मनःपर्यय ज्ञानी, मनपने परिणत अनन्त प्रादेशिक अनन्त स्कंधों को जानता और देखता है । इत्यादि जिस प्रकार नन्दो सूत्र में कहा है उसी प्रकार यावत् भाव तक जानना चाहिये।
१०६ प्रश्न-हे भगवन् ! केवलज्ञान का विषय कितना कहा गया है ?
१०६ उत्तर-हे गौतम ! संक्षेप से चार प्रकार का कहा गया है। यथा-द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से । द्रव्य से केवलज्ञानी सभी द्रव्यों को जानता और देखता है। इस प्रकार यावत् भाव से केवलज्ञानी समस्त भावों को जानता और देखता है।
१०७ प्रश्न-मइअण्णाणस्स णं भंते ! केवइए विसए पण्णत्ते ?
१०७ उत्तर-गोयमा ! से समासओ चउविहे पण्णत्ते, तं जहादव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ। दवओ णं मइअण्णाणी मइ
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