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१३५२ भगवती सूत्र - श. ८ उ. २ ज्ञान की व्यापकता ( विषय द्वार )
जहा - दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ । दव्वओ णं ओहिणाणी रूविदव्वाई जाणइ पासइ, जहा गंदीए, जाव भावओ ।
१०५ प्रश्न -मणपजवणाणस्स णं भंते! केवइए विसए पण्णत्ते ? १०५ उत्तर - गोयमा ! से समासओ चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहादव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ । दव्वओ णं उज्जुम अनंते अनंत एसिए, जहा गंदीए, जाव भावओ ।
१०६ प्रश्न - केवलणाणस्स णं भंते! केवइए विसए पण्णत्ते ? १०६ उत्तर - गोयमा ! से समासओ चउब्विहे पण्णत्ते, तं जहादव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ । दव्वओ णं केवलणाणी सव्वदव्वाई जाणइ पासड़, एवं जाव भावओ ।
कठिन शब्दार्थ - आए सेणं-- आदेश से - ओघरूप से अर्थात् सामान्य विशेष की विवक्षा किये विना मात्र द्रव्य रूप से, समासओ --संक्षेप से, उवउत्ते - उपयुक्त । --हे भगवन् ! आभिनिबोधिक ज्ञान का विषय
भावार्थ - - १०२ प्रश्न-
कितना कहा गया है ?
१०२ उत्तर - हे गौतम! आभिनिबोधिक ज्ञान का विषय संक्षेप से चार प्रकार का कहा गया है । यथा-द्रव्य से, क्षेत्र से काल से और भाव से । द्रव्य से आभिनिबधिक ज्ञानी, सामान्य रूप से सभी द्रव्यों को जानता देखता है। क्षेत्र से आभिनिबोधिक ज्ञानी आदेश से ( सामान्य से ) सभी क्षेत्र को जानता और देखता है । इसी प्रकार काल और भाव से भी जानना चाहिये ।
१०३ प्रश्न - हे भगवन् ! श्रुतज्ञान का विषय कितना कहा गया है ? १०३ उत्तर - हे गौतम ! वह संक्षेप से चार प्रकार का कहा है । यथा
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