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________________ भगवती सूत्र - श. ८ उ. २ ज्ञान की व्यापकता ( विषय द्वार ) तीन ज्ञान या तीन अज्ञान विग्रह गति में होते हैं । अनाहारक केवलज्ञानी को केवलीसमुद्घात और अयोगी अवस्था में एक केवलज्ञान ही होता है । इस कारण अनाहारक जीवों में मन:पर्यय ज्ञान के सिवाय चार ज्ञान और तीन अज्ञान कहे गये हैं । ज्ञान की व्यापकता ( विषय द्वार ) १०२ प्रश्न - आभिणिवोहियणाणस्स णं भंते ! केवइए विसए पण्णत्ते ? १०२ उत्तर - गोयमा ! से समासओ चउब्विहे पण्णत्ते, तं जहा दव्वओ, खेत्तओ, कालओ भावओ । दव्वओ णं आभिणिबोहियगाणी आएसेणं सव्वदव्वाई जाणइ पासइ, खेत्तओ णं. आभिणिबोहियणाणी, आपसेणं सव्वखेत्तं जाणइ पासइ, एवं कालओ वि, एवं भावओ विं । १०३ प्रश्न - सुयणाणस्स णं भंते ! केवइए विसर पण्णत्ते ? १०३ उत्तर - गोयमा ! से समासओ चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहादव्वओ, खेतओ, कालओ, भावओ । दव्वओ णं सुयणाणी उवउत्ते सव्वदव्वाई जाणइ, पासइ, एवं खेत्तओ वि, कालओ वि । भावओ णं सुयणाणी उवउते सव्वभावे जाणइ, पासह । १०४ प्रश्न - ओहिणाणस्स णं भंते! केवइए विसए पण्णत्ते ? १०४ उत्तर - गोयमा ! से समासओ चउव्विहे पण्णत्ते, तं Jain Education International . १३५१ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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